जिन्हें भाव जग में खले दीप के
वही कहते आरे चले दीप के।१।
*
यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के
तमस जी रहा है तले दीप के।२।
*
बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को
नहीं एक हम ही छले दीप के।३।
*
चले है तमस यूँ दिखा आँख जो
लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।
*
कहाँ कब जले घर नहीं है पता
इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।
*
परायों से बढ़ आज अपनो से भय
न बाती ही कालिख मले दीप के।६।
*
कहीं फूट जाये तुम्हीं में किरण
चलो साथ दो पग जले दीप के।७।
*
तमस भी 'मुसाफिर' दुआ दे उसे
कि आशीष जिसको फले दीप के।८।
*
****
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online