अँधेरे    उजाले    मिले   प्यार   से
 चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।
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 नहीं काम  आता  किसी  के कोई
 मिटे  दुख  भला   कैसे  संसार  से।२।
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 हटा मैल मन का तनिक भी नहीं
 नहा कर चले  नित्य  हरिद्वार से।३।
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 न बदला है  कोई  किसी के कहे
 जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।
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 अकेले न  तुम  हो  असंतुष्ट अब
 हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।
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 शिखर चाहते   हैं  सजाना बहुत
 हटाकर   सभी   ईंट  आधार  से।६।
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 यहाँ अश्क ने हाल ऐसा किया
 जली देह  जितनी  न अंगार से।७।
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 मिटे द्वेष सब के दिलों से यहाँ
 करो एक  अरदास  करतार से।८।
 *
 मौलिक/अप्रकाशित
 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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