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घनाक्षरी सलिला : छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग. संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला :
छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.
संजीव 'सलिल'
*
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..
*
नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.
अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया के बोझिया, पिपल्या के छाँव..
अगोर पुरवईया, बटोर माछी भइया, अंजोर बैल-गइया, कुठरिया के ठाँव.
नमन माटी मइया, गले लगाये सइयां , बढ़ाव बैल-गइया, सुरग होथ गाँव....
*
देस के बिकास बर, सबन उजास बर, सुरसती दाई माई, दया बरसाय दे.
नव-नवा काम होथ, देस स्वर्ग धाम होथ, धरती म धान बोथ, फसल उगाय दे..
टूरा-टूरी गुणी होथ, मिहनती-धुनी होथ, हिरदा से नेह होथ, सलीका सिखाय दे.
डौका-डौकी चाह पाल, भाड़ मा दें डाह डाल, ऊँचा ही रखें कपाल, रीत नव बनाय दे..
*
रचना विधान: वर्णात्मक छंद, चार पद, हर पद में चार चरण, हर चरण में ८-८-८-७ पर यति, चरणान्त दीर्घ,  
Acharya Sanjiv Salil

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2011 at 2:07pm

इस प्रयोग पर साधुवाद.

//भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..//

अति सुन्दर.

सरस प्रवाह की कसौटी पर बहती पंक्ति-धारा यथोचित निर्देशित है. 

साथ ही, यदि निर्दिष्ट स्थान पर अर्थ के संकेत देदिये जाते तो मेरे जैसा सामान्य पाठक कुछ और प्रवाहित होता.  यथा, बोबरा-फार बनाव भोजपुरी का बबरी फारना   है क्या? जिसका अर्थ केश थकरना (बाल झाड़ना, मांग निकालना) होता है.

सादर.

Comment by HIRALAL KASHYAP on July 24, 2011 at 10:17pm

salil ji aakke rachna bahut badhiya haway

Comment by sanjiv verma 'salil' on July 24, 2011 at 9:24am

आत्मीय संदीप जी!
वन्दे मातरम.
आपकी पाठकीय सजगता और गुणग्राहकता को नमन.
संभवतः 'फार-बोवरा बनाय, पीपलया के छाँव, रीत बतलाय दे.' करने से त्रुटि-निवारण हो जाएगा.
पुनः आभार.

Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on July 22, 2011 at 10:51am

आदरणीय आचार्य श्री “सलिल” जी आपकी “घनाक्षरी:सलिला” का प्रत्येक शब्द हृदय पटल पर सजी मातृ –भूमि की छवि को संजीवनी सी सुंघा जीवंत कर आपके नाम की सार्थकता प्रमाणित कर जाता है।छत्तीसगढ़ी में आपका यह आभिनव प्रयास स्तुत्य ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है।विशेषतया पहला और अन्तिम घनाक्षरी काव्य कसौटी पर बेहद खरा उतरता है।

“मक्षिका स्थाने मक्षिका पातम्‍” से बचने के लिये यदि मेरी विनम्र प्रार्थना को अन्यथा न लें तो निम्नांकित पंक्तियों में क्रमश: १. प्रवाह (बोबरा-फार बनाव), 2.मात्रापूर्ति ( पिपल्या के छाँव).. 3. वर्णातिक्रम ण (रीत नव  {नौ} बनाय दे)पर ध्यानाकर्षित करना चाहूँगा पुनरावलोकन कर पुनर्नवा कर दें।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 22, 2011 at 9:19am

बहुत ही सुंदर और अभिनव प्रयोग, तीनो घनाक्षरियां खुबसूरत बन पड़ी है, प्रवाह भी बहुत सुंदर, छतीसगढ़ी होते हुए भी कथ्य बिलकुल स्पष्ट है | बहुत बहुत बधाई आचार्य जी |

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