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सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना
आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।
*
कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के
जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।
*
कब जाग जाये कौन  सा  बदज़ात जानवर
सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।
*
करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम
चाहे पड़े  भकोसना  या फिर कि चोलना।४।
*
चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं
जिस में बुढ़ापा चाहता बचपन सा डोलना।५।
*
मन ये तुम्हारा आज भी जन्नत से कम नहीं
उस में कभी जहान  के  विष को न घोलना।६।

*
आये जो मौत द्वार  पे छिपना न जिन्दगी
हर डर बिसार साँस को उस से तू मोलना।७।
*
चोलना= मुँह जूठा करना (नाममात्र का खाना)

----------
मौलिक/अप्रकाशित

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