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बह्र-2122 2122 2122 212
काफ़िया- गुमरही "ई" स्वर
रदीफ़-"क्या चीज़ है"

ग़ज़ल-

समझा राहे-दिल से हट कर गुमरही क्या चीज़ है।
बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है।।

प्यार रब की बन्दगी है प्यार रब की है रज़ा।
प्यार से बढ़ कर जहाँ में दूसरी क्या चीज़ है।।

ख़ुश्क होठों पर ये रखते हैं तराने प्यार के।
आशिक़ों से पूछ लो दीवानगी क्या चीज़ है।।

उनको छेड़ा इक ज़रा तो हो गया चेहरा गुलाल।
खुल गया मुझ पर उभरती रौशनी क्या चीज़ है।।

उलझी उलझी रहती हूँ उसके ख़यालो-ख़्वाब में।
मैं नहीं ये जानती हूँ बे ख़ुदी क्या चीज़ है।।

काश रब हम को भी उन के जैसी दे देता कशिश।
हुस्न वालों को बताते तश्नगी क्या चीज़ है।।

आप ने जब हिज्र बख़्शा तब ये जाना "नाज़" ने।
कर्बो-ग़म कहते हैं किस को बेकली क्या चीज़ है।।

ममता गुप्ता "नाज़"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2024 at 3:50pm

आ. ममता जी, अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई। 

Comment by Mamta gupta on July 20, 2024 at 2:12pm

आदरणीय सर सादर नमन  🙏 

मुझसे गलती से आपके कमेन्ट के साथ कई लोगों के कमेंट डिलीट हो गए इसके लिए क्षमा चाहती हूँ आपने ग़ज़ल को संवारने के लिए बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🌺🌺

मै सुधार करती हूँ 🙏

Comment by Samar kabeer on July 19, 2024 at 4:06pm

मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, इससे पहले भी कमेंट किया था जो आपकी ग़लती से डिलीट हो गया ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'बे सरो-पाई है क्या और बे घरी क्या चीज़ है'

इस मिसरे में 'बे सरोपाई' कोई शब्द नहीं है,एक शब्द है 'बे सरोपा' इसका अर्थ है,जिसका कोई सर पैर न हो, दूसरा शब्द है 'बे घरी' ये शब्द भी मेरी डिक्शनरी में तो नहीं है,बे घर ज़रूर है,उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं:-

'बे सरो सामानी है क्या मुफ़लिसी क्या चीज़ है'

'काश रब हम को भी उन के जैसी दे देता कशिश
हुस्न वालों को बताते तश्नगी क्या चीज़ है'

इस शे'र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं, क्योंकि ऊला में आप उनके जैसी कशिश माँग रही हैं और सानी में तिश्नगी का ज़िक्र कर रही हैं, उचित लगे तो तिश्नगी की जगह "दिलकशी" कर लें ।

एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि ग़ज़ल में किसी तरह के भी विराम चिन्हों का प्रयोग नहीं किया जाता ।

कुछ टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त करें:-

राहे--'राह-ए-'

बन्दगी--'बंदगी'

चेहरा--'चहरा'

ख़यालो ख़्वाब--'ख़याल-ओ-ख़्वाब'

कर्बो ग़म--'कर्ब-ओ-ग़म'

Comment by Mamta gupta on July 19, 2024 at 1:47pm

आदरणीय @Euphonic Amit उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया आपका

Comment by Euphonic Amit on July 15, 2024 at 7:37pm

अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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