पसीना बोलता है (गीत)
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चन्द सूखी रोटियाँ खाकर
कष्ट में हँस गीत नित गाकर
खुशी वो घोलता है।
पसीना बोलता है।।
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देह मैली, पर जगत चमका
सब सुधारा, आ जहाँ धमका
हाथ की छैनी कुदालों से
नित द्वार सुख के खोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
स्वप्न जो है पोषता सब का
राह आगन देखता उस का
शौक से कब छोड़ घर अपना
परदेश में वह डोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
खेत हों या कारखाने हों
दो अधिक, कम चार आने हों
बस समर्पित कर्म को हर पल
पर सेठ उस को तोलता है।
पसीना बोलता है।।
*
ठान मन में जब जहाँ निकला
इतिहास क्या भूगोल बदला
शक्ति के बल तोड़ हर कारा
वो नव क्षितिज झट खोलता है।
पसीना बोलता है।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
दुसरे बंद को सुधारने का प्रयास करता हूँ जिससे कहन स्पष्ट हो सके। आँगन में टंकण त्रुटि के लिए खेद है। मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार।
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, 'पसीना बोलता है' श्रमिकों की आवाज़ बुलंद करता एक अच्छा गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी दूसरा बंद बहुत स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. कुछ व्याकरण सम्बन्धी दोष जैसा प्रतीत हो रहा है. आगन/आँगन. सादर
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