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दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।
सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।

 

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।
धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।

 

मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।

 

आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।
रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।

 

रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।
स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल ।।

 

सच्चे मन से जो करे, रिश्तों से निर्वाह  ।
उसकी भी रिश्ते करें, जीवन में परवाह ।।

 

हर रिश्ते को दीजिये, अपना थोड़ा वक्त ।
निश्चित होगा आप पर, हर रिश्ता आसक्त ।।

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 17, 2024 at 8:52pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2024 at 10:56pm

रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना जी. 

हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

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