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प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत

सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन

होता जीवन में नव संचार

बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र

ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते

युवा बुजुर्गों संग बाल

कर्णप्रिय लोकगीतों की मधुर सी धुन

दर के आगे आग जलाती माताएँ 

कुदरत के सोये कण - कण को जगाने

सज आया मकर संक्रांति पर्व।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

Views: 23

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Comment by Saurabh Pandey yesterday

बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. 
इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी. ऐसा मेरी समझ मात्र है. 

हार्दिक बधाइयाँ 

Comment by नाथ सोनांचली on January 14, 2025 at 2:11pm

बढ़िया है

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