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दोहा सप्तक. . . धर्म

दोहा सप्तक. . . धर्म

धर्म बताता जीव को, पाप- पुण्य का भेद ।
कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद ।। 

 

दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख  ।
करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन रेख ।।

 

सदकर्मों से है भरा, हर मजहब का ज्ञान।
चलता जो इस राह पर, वो पाता पहचान ।।

 

पंथ हमें संसार में, सिखलाते यह  मर्म ।
जीवन में इन्सानियत, सबसे  उत्तम कर्म ।।

 

चलते जो संसार में, सदा धर्म की राह ।
नहीं निकलती कष्ट में, उनके मुख से आह ।।

 

धर्म - कर्म से जो भरे, अपनी गागर नित्य ।
उसके पुण्यों का नहीं, ढलता फिर आदित्य ।।

 

मजहब तो इंसान का, प्रेम सुधा आनन्द ।
लगा दिए  संसार ने, नफरत के पैबंद ।।

सुशील सरना / 18-1-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 16, 2025 at 8:34pm

आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2025 at 5:52pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है. 

हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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