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दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

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देवलोक भी जोहता,

चकवे की ज्यों बाट।

संत सनातन संग कब,

सजता संगम घाट।1।

तीर्थराज के घाट पर,

आ पहुँचे वो संत।

देव दनुज दल तरसते,

दर्शन को अत्यंत।2।

संगम नदियों संग ही,

मानवता का खास।

श्रद्धा औ विश्वास सह, 

परम तत्त्व का वास।3।

गंगा यमुना संग मिल,

सरस्वती का नीर।

महाकुंभ भगवान बन, 

हरता जन की पीर।4।

सन्यासी बन कुंभ में,

देवलोक को छोड़।

पहुँचे पावन स्नान को, 

खूब मची है होड़।5।

हठयोगी की कुंभ में,

शैय्या कांटेदार।

कोई उलटा लटकता,

को रखता सिर भार।6।

अजब अखाड़े कुंभ में, 

अद्भुत सबकी साख।

कोई खेले आग से,

को तन मलता राख।7।

विश्व कोश में कुंभ का, 

बढ़ा दायरा आज। 

संस्कारों की शान पर,

करे सनातन नाज।8।

मात-पिता की चरण रज, 

सौ-सौ कुंभ समान। 

सुबह शाम सर माथ धर, 

बचे भीड़ से जान।9।

भेड़ चाल सी भीड़ में, 

भगदड़ का परिणाम।

छिन में छिनती जिंदगी, 

किसे करें इल्ज़ाम।10।

नाकामी सरकार की, 

कहते हैं जो लोग।

नाकारी के भार से,

भरे मनों में रोग।11।

बड़े-बड़े से नयन वो,

करते मीठी बात।

सुना नाम मोनालिसा, 

बंजारन है जात।12।

कंठी माला बेचकर,

मेले में मशहूर।

नयन बाण जब साधती, 

हृदय होत नासूर।13।

जमघट जमता कुंभ में, 

पावन नगर प्रयाग।

घरबारी घर त्याग कर, 

अपनाते बैराग।14।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

कैथल (हरियाणा)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2025 at 9:07pm

आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.

एक बात अवश्य कहना चाहूँगा.

प्रथम चरण का अंत रगण या रगणात्मक ही रखने का प्रयास करें.

शुभातिशुभ

कृपया ध्यान दे...

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