दोहा दशम्. . . . गुरु
शिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार ।
नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार ।।
बिना स्वार्थ के बाँटता, शिक्षक अपना ज्ञान ।
गढ़े ज्ञान से वह सदा, एक सभ्य इंसान ।।
गुरुवर अपने ज्ञान से , करते अमर प्रकाश ।
राह दिखाते सत्य की, करते तम का नाश ।।
शिक्षक करता ज्ञान से , शिष्यों का उद्धार ।
लक्ष्य ज्ञान से सींचता, उनका नव संसार ।।
गुरु बिन संभव ही नहीं, जीवन का उत्थान ।
पैनी छेनी ज्ञान की, गढ़ती नव पहचान ।।
बिना साधना के भला, कब मिलता है ज्ञान ।
गुरुवर अपने ज्ञान से, फूंके इसमें जान ।।
केवल पुस्तक से नहीं, मिलता सारा ज्ञान ।
जीवन के हर प्रश्न का, गुरु के पास निदान ।।
करना जीवन में सदा, अपने गुरु का मान ।
दूर करे हर तिमिर को, वह तो ईश समान ।।
जीवन के हर भरम को, तोड़े गुरु का ज्ञान ।
अन्धकार में वह सदा, जलता दीप समान ।।
व्यर्थ नहीं जाता कभी, गुरु वाणी का ज्ञान ।
जीवन के हर प्रश्न का, इनके पास निदान ।।
सुशील सरना / 5-9-25
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