For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों तू ही मन को भाये...

और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||

जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों  की गरमी में|
अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||
मै तुझमे मिल  जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|
और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

जब-जब गिरती नभ से बूँदें  , मै पूरा  जल जल जाता हूँ|
जी करता है भष्म  हो जाऊं, पर तुमको  ना  पता हूँ||
तू अंगार  जला दे  मुझको, कहीं पे  कुछ भी छूट न पाए|
और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||

तड़प-तड़प के रह जाता हूँ, जैसे मछली  जल बिन तरसे|
बहुत सताती हो तुम  मुझको, जब-जब ये बादल है बरसे||
मेरी  प्यास बुझा दे  ऐसे, सारा  बदन ही तर हो जाए |
और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on August 20, 2011 at 9:58am

आप लोगो को मेरी ये रचना पसंद आई मै बहुत प्रसन्न हूँ|
आप लोगो को बहुत बहुत धन्यवाद|

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 14, 2011 at 5:43pm

बड़ा कठिन सवाल पूंछा है आशीष भाई आपने ...लेकिन इतना खूबसूरत और भाव प्रधान है कि ह्रदय को बरबस छू लेता है.

इस सुन्दर रचना को पढाने का मौका देने के लिए धन्यवाद ....आपका आभार  

Comment by satish mapatpuri on August 6, 2011 at 12:42am

और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

बड़ा ही सुन्दर ख्याल है आशीषजी, बधाई हो.

Comment by Veerendra Jain on August 5, 2011 at 10:57pm

badhiya prayaas hai..ashish bhai....likhna jari rakhiye....

Comment by आशीष यादव on August 5, 2011 at 9:21pm

श्री Arun Kumar Pandey 'Abhinav' जी उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद|

Comment by Abhinav Arun on August 5, 2011 at 9:04pm
बिलकुल जीवन के "गुज़र " को स्वर  देती रचना आशीष जी ! हर कवि अपने आरंभिक दौर में ऐसी रचनाओं  से गुज़रता है जो कालांतर में उसे निखारती और परिमार्जित करती है !! हार्दिक शुभकामनाये आपकी रचनाधर्मिता को !! 
Comment by आशीष यादव on August 5, 2011 at 2:26pm

aadarniya Lata R.Ojha ji. hausla aafjai ke liye dhanywaad.

Comment by आशीष यादव on August 5, 2011 at 2:25pm

aadarniy विवेक मिश्र ji, aap logo ka margdarshan milta rahega to mai aage achchhi koshish karunga|

thankyou.

Comment by Lata R.Ojha on August 5, 2011 at 10:19am

सुंदर अभिव्यक्ति..यूँही लिखते /सीखते /रचते रहिए:) 

Comment by विवेक मिश्र on August 4, 2011 at 11:15pm

आशीष भाई,

ये शे'र तो सुना ही होगा आपने.

"सिर्फ अंदाज़-ए-बयाँ बदल देता है हर बात

वरना दुनिया में कोई बात नई बात नहीं-"

सौरभ जी की बातों से पूर्ण सहमत हूँ. आपकी पूर्व रचनाओं को पढ़कर ऐसा कह सकता हूँ कि आप इससे बहुत अच्छा लिख सकते हैं. आपके अन्दर है वो जोश, वो जूनून.

/और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||/

इस कविता की सर्वाधिक सुन्दर पंक्तियों के लिए हार्दिक शुभकामनायें.

जय हो!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service