For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - अनजाने चेहरों की दोस्ती

यह बात अधिकतर कही जाती है कि एक सच्चा दोस्त, सैकड़ों-हजारों राह चलते दोस्तों के बराबर होता है। यह उक्ति, न जाने कितने बरसों से हम सब के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। दोस्ती की मिसाल के कई किस्से वैसे प्रचलित हैं, चाहे वह फिल्म ‘शोले’ के जय-वीरू हों या फिर धरम-वीर। साथ ही भगवान कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की प्रगाढ़ता जग जाहिर है। ऐसी दोस्ती की कहानियां धर्म ग्रंथों में कई मिल जाएंगी। यह भी कहा जाता है कि कलयुग में जितना हो जाए, बहुत कम है। कुछ भी हो जाए तो बस ‘कलयुगी’ उदाहरण दिया जाता है। कलयुग में बहुत कुछ हुआ है, जो कभी सुनने में नहीं आया है। रिश्तों को कलंकित करना, जैसे कलयुग के हिस्से में ही है, कभी कोई कलयुगी बेटा हो जाता है तो कोई कलयुगी बाप बन जाता है। यह पदवी उन्हें ऐसे ही नहीं मिलता, इसके एवज में वे घृणित कार्य को शिरोधार्य करते हैं। कलयुग की पटकथा पर कई फिल्में बनाई गई हैं, अब तो ‘कलयुगी तकनीकी दोस्ती’ पर भी कोई फिल्म बनाया जाना चाहिए। कुछ नहीं तो एकाध पुस्तक लिखी जानी चाहिए, जिसका विमोचन भी फेसबुकिया दोस्ती के पैरोकार करे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
तकनीकी प्रणाली में कलयुग की एक नई दोस्ती की कहानी गढ़ी जा रही है, वो है, अनजाने चेहरों से दोस्ती। एक दशक पहले एक फिल्म आई थी, ‘सिर्फ तुम’। इस फिल्म में जिस तरह बिना चेहरा देखे ‘प्यार’ हो जाता है और शादी की चाहत जाग जाती है, कुछ वैसा ही हाल ‘अनूठी दोस्ती की कहानी’ की है। दरअसल, आज दोस्तों की संख्या बढ़ाने की अजीब जद्दोजहद चल रही है, जिसमें कोई पीछे नहीं रहना चाहता, भले ही वे उस दोस्त के चेहरे से वाकिफ न हों। जो चेहरे दिख जाए, वही दोस्ती की फेहरिस्त में शामिल हो जाता है। ये अलग बात है, वह चेहरे पर चेहरा लगाया हो। इससे बात कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह गरीब है कि अमीर। ऐसा लगता है कि जैसे ‘चेहरा पहचान’ स्पर्धा की धूम मची है। जिन नाम को आपने सुना तक नहीं है, उनका यहां चेहरा का आभामंडल सहज देखा जा सकता है।
दोस्ती का कीड़ा ने भी मुझे भी काटा है, लिहाजा मैं भी ‘फेसबुकिया बीमारी’ की चपेट में हूं और देश भर में दोस्त बनाने में जुटा हूं। मैं कईयों को नहीं जानता, कभी नाम तक नहीं सुना। मगर धन्य है, हमारी फेसबुकिया पद्धति। जिसके आने के बाद सब आसान हो गया है, मिनटों-मिनटों में दोस्त टपक आते हैं, बटन दबाए नहीं, सामने नजर आ जाते हैं। चेहरा दिखते ही बस यही आवाज सुनाई देती है, मुझे भी अपनी ‘दोस्ती की किताब’ में शामिल कर लो। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम एक हैं, दोस्ती की कहानी भी कुछ वैसी है, क्योंकि जिस तरह देश में कहीं भी रहने व जाने का अधिकार है, दोस्त बनाने के लिए भी कोई रोक-टोक नहीं है। हम सब जानते हैं कि आसपास में कितने दोस्त बना पाते हैं, लेकिन ‘फेसबुकिया’ तकनीक ने तो दोस्तों की भरभार कर दी है। मन में यह बात सहसा आ जाती है कि दोस्ती का समुद्र सामने खड़ा है, जहां से जितना दोस्त चाहो, ले सकते हो। जैसे हम समुद्र के पानी को जितना भी लें, खत्म नहीं होता, वैसा ही दोस्त बनाने की कतार कहीं कटती नहीं। कोई न कोई कतार में दिखाई देता ही रहता है। दोस्तों की फेहरिस्त इतनी अधिक रहती है कि चेहरा तो दूर, नाम तक याद नहीं रहता, हैं न लाजवाब दोस्ती। दोस्ती की ऐसी मिसालें देखने को नहीं मिलेंगी, आपको ही पता नहीं कि आपके दोस्त कहां के हैं और करते क्या हैं ?
इस दोस्ती की कहानी यहीं नहीं रूकती, जैसे हर कहीं दोस्तों में गु्रपबाजी होती है, वैसे हालात यहां भी हैं। गुटबाजी किए व उसके हिस्से में आए बिना हमें लगता है, जैसे कुछ हासिल ही नहीं हुआ। पहले हमें विदेशी कंपनी ने कई तराजू में तौला और बांटा, अब फेसबुकिया बीमारी की बदौलत हम ‘ग्रुप की लड़ाई’ में शामिल हो रहे हैं। जहां देखो हर किसी का अपना ग्रुप है। अब समझ में नहीं आता कि किसके ग्रुप में रहें। कई तो ग्रुप बिना ही रहना चाहते हैं, लेकिन वे मानें, तब ना। जो अनजाने चेहरों से दोस्ती में माहिर हैं। चिकने चेहरे देखकर तो लार लपकाने वालों की कमी नहीं है और कई अपना शगल ही बना लिए हैं, चेहरे पर चेहरा लगाना। अब इसमें कोई क्या कर सकता है, जो अपना चेहरा ही दुनिया को दिखाना नहीं चाहता।
अब ऐसे में कौन बताए कि सच्चा कौन है और झूठा कौन ?, क्योंकि दोस्ती का पैमाना तो सच्चाई व ईमानदारी है, मगर ये तो खुले बाजार में मिलती नहीं, जो ‘फेसबुकिया बीमारी’ लगने के बाद आसानी से मिल जाती है। आज तो इस बीमारी की खुमारी छाई है, अनजाने चेहरों की दोस्ती की ललक हर कहीं नजर आ रही है। दम मार-मार कर बस यही कोशिशें जारी हैं कि कैसे भी हो, खुद को अनजाने चेहरों तक पहुंचाना ही है, भले ही वे याद रखें या न रखें।
मैं भी इस फेहरिस्त में शामिल हूं, क्योंकि अपना चेहरा तो कोई पहचानता नहीं, कोई देख ले तो फिर सिर फिरा ले। इसलिए यह शार्टकट राह मैंने भी चुन ली। ये तो सभी जानते हैं कि शार्टकट से कोई सफल नहीं होता। लिहाजा देखते हैं, ये दोस्ती कब तक चलेगी, हालांकि मैं तो यही कहूंगा, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे...


राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 098934-94714

Views: 320

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service