For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितना अच्छा लगता है

कभी खुद से खोकर

खुद को ढूँढना.

 

बीती हुई गलतियों पर

एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;

गुजरे रास्तों से

फिर से गुजरना,

छोड़े हुए मोडों पर

जगती जिज्ञासा,

कहाँ ले जाते 

वे मोड़

अगर लिये होते.

 

खुशियों के कुछ मधुर पल 

जो आज भी अंकित हैं

स्मृतियों में,

और वे पल भी

जब कभी रोये थे 

बिना किसी कंधे के सहारे.

 

कितने साथी और रिश्ते

जो बने और बिछुड़ गये

और कुछ 

जो होकर भी साथ

बन गये अनजाने.

 

इतिहास के 

पीले पन्नों में

कुछ सूखे गुलाब,

आँखों से गिरे

अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,

और उनके बीच झांकता 

एक धुंधला चेहरा,

कितना मुश्किल कर देता है

उन पन्नों में ढूँढना 

अपने आप को.

 

काश भूल पाता यह सब

और ढूंढ पाता

खुद को खुद से भूल कर 

वह मासूम 

और निश्छल चेहरा 

जो फंस गया है

जीवन के मकड़जाल में.

Views: 413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kailash C Sharma on September 15, 2011 at 8:41pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना में अन्तर्निहित भावों का विषद विश्लेषण और प्रोत्साहन  के लिये आभार. 

Comment by Kailash C Sharma on September 15, 2011 at 8:34pm

गणेश जी, रचना को पसन्द करने और प्रोत्साहन के लिये आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2011 at 10:17pm

स्वयं से होते हुए गुजरना, या, पूर्व घटित क्रम को पुनः विजन में देखना, कइयों के लिये मनन, कइयों के लिये तुष्टि तो कइयों के लिये चरित्र हो सकता है. अक्सर होता है, वयस-विशेष के बाद व्यतीत मुलायम घड़ियों के प्रति निर्लिप्तता बढ़ती जाती है. जीवन के कुछ अत्यंत आग्रही पल भी व्यतीत काल-खण्ड के आयाम के सापेक्ष अनवरत जीवन-गति के अनगढ़ हिस्से-से प्रतीत होने लगते हैं. किन्तु इस रचना में कवि ने न केवल उन पलों को मुलामियत से छुआ है बल्कि इस स्वीकारोक्ति के साथ वह सापेक्ष होता है कि उसके समस्त वैविध्य में वे आग्रही पल आज भी अनायास उलझे हुए वर्त्तमान जीवन का हिस्सा बने बैठे हैं.  उन्हें अनायास बार-बार जीना भले ही एक मन से रोमांचकारी हो, परन्तु, उनका बार-बार उमग जाना अर्ध-विमुक्त हार्दिक भावनाओं के स्पंदन को अतुकांत बना देने का कारण हो जाता है. और कहना न होगा कि इस स्वीकारोक्ति के साथ ही कवि अपने रचनाधर्म में सफल हो जाता है.

आदरणीय कैलाशजी को इस रोमिल-रचना हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2011 at 8:36pm

काश भूल पाता यह सब

और ढूंढ पाता

खुद को खुद से भूल कर 

वह मासूम 

और निश्छल चेहरा

 

हम सभी चेष्ठा करते है पर काश ढूंढ़ पाते, जिन्दगी में कुछ समय ऐसे होते है जिसे हम याद करना नहीं चाहते और कुछ पलों को खोना नहीं चाहते, सुख के दिन कैसे पंख लगाकर उड़ जाते है और दुःख के दिन .....वोह बीतने के बाद भी सालते रहते है |

बहुत ही खुबसूरत रचना की प्रस्तुति है बहुत बहुत आभार आदरणीय कैलाश शर्मा जी |

Comment by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 6:27pm

अरुण जी और सिया जी उत्साहवर्धन के लिये बहुत आभार..

Comment by siyasachdev on September 14, 2011 at 6:09pm

उत्कृष्ट रचना ..सच कहूं तो इसे पढ़ते समय दिल भर आया और आँखें नम हो आई | इस रचना के लिए बधाई 

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2011 at 4:14pm

आत्म अवलोकन की बात करती रचना सशक्त और निर्झर प्रवाहमान !! बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर सार्थक रचना पर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
17 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service