कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों से
फिर से गुजरना,
छोड़े हुए मोडों पर
जगती जिज्ञासा,
कहाँ ले जाते
वे मोड़
अगर लिये होते.
खुशियों के कुछ मधुर पल
जो आज भी अंकित हैं
स्मृतियों में,
और वे पल भी
जब कभी रोये थे
बिना किसी कंधे के सहारे.
कितने साथी और रिश्ते
जो बने और बिछुड़ गये
और कुछ
जो होकर भी साथ
बन गये अनजाने.
इतिहास के
पीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा,
कितना मुश्किल कर देता है
उन पन्नों में ढूँढना
अपने आप को.
काश भूल पाता यह सब
और ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
Comment
आदरणीय सौरभ जी, रचना में अन्तर्निहित भावों का विषद विश्लेषण और प्रोत्साहन के लिये आभार.
गणेश जी, रचना को पसन्द करने और प्रोत्साहन के लिये आभार.
स्वयं से होते हुए गुजरना, या, पूर्व घटित क्रम को पुनः विजन में देखना, कइयों के लिये मनन, कइयों के लिये तुष्टि तो कइयों के लिये चरित्र हो सकता है. अक्सर होता है, वयस-विशेष के बाद व्यतीत मुलायम घड़ियों के प्रति निर्लिप्तता बढ़ती जाती है. जीवन के कुछ अत्यंत आग्रही पल भी व्यतीत काल-खण्ड के आयाम के सापेक्ष अनवरत जीवन-गति के अनगढ़ हिस्से-से प्रतीत होने लगते हैं. किन्तु इस रचना में कवि ने न केवल उन पलों को मुलामियत से छुआ है बल्कि इस स्वीकारोक्ति के साथ वह सापेक्ष होता है कि उसके समस्त वैविध्य में वे आग्रही पल आज भी अनायास उलझे हुए वर्त्तमान जीवन का हिस्सा बने बैठे हैं. उन्हें अनायास बार-बार जीना भले ही एक मन से रोमांचकारी हो, परन्तु, उनका बार-बार उमग जाना अर्ध-विमुक्त हार्दिक भावनाओं के स्पंदन को अतुकांत बना देने का कारण हो जाता है. और कहना न होगा कि इस स्वीकारोक्ति के साथ ही कवि अपने रचनाधर्म में सफल हो जाता है.
आदरणीय कैलाशजी को इस रोमिल-रचना हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.
काश भूल पाता यह सब
और ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
हम सभी चेष्ठा करते है पर काश ढूंढ़ पाते, जिन्दगी में कुछ समय ऐसे होते है जिसे हम याद करना नहीं चाहते और कुछ पलों को खोना नहीं चाहते, सुख के दिन कैसे पंख लगाकर उड़ जाते है और दुःख के दिन .....वोह बीतने के बाद भी सालते रहते है |
बहुत ही खुबसूरत रचना की प्रस्तुति है बहुत बहुत आभार आदरणीय कैलाश शर्मा जी |
अरुण जी और सिया जी उत्साहवर्धन के लिये बहुत आभार..
उत्कृष्ट रचना ..सच कहूं तो इसे पढ़ते समय दिल भर आया और आँखें नम हो आई | इस रचना के लिए बधाई
आत्म अवलोकन की बात करती रचना सशक्त और निर्झर प्रवाहमान !! बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर सार्थक रचना पर !!
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