कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों…
ContinuePosted on September 14, 2011 at 2:30pm — 7 Comments
अन्तर्मन में तू रम जाये,
सांस सांस तेरा गुण गाये।
कण कण में तुझको मैं देखूँ,
नज़र पराया कोई न आये।
द्वेष न हो कोई भी मन…
ContinuePosted on September 8, 2011 at 2:32pm — 3 Comments
इतना बंदी मत करो मुझे अहसानों से,
कि आखिर को प्रतिदान नहीं मैं दे पाऊँ.
अहसान तेरे सदियों के कैसे याद रहें.
जलने दो जो जलती मुस्कानों की होली,
इतने आंसू मत गिरो, नहीं…
Posted on September 2, 2011 at 8:00pm — 9 Comments
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
वाह बहुत खूब जीवन के सच को उजागर करती कविता
वाह बहुत खूब जीवन के सच को उजागर करती कविता