For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इतना बंदी मत करो मुझे अहसानों से....

इतना बंदी  मत करो मुझे अहसानों से,

कि आखिर को प्रतिदान नहीं मैं दे पाऊँ.

 

विस्मृत अस्तित्व होगया जब मुझसे मेरा,

अहसान तेरे सदियों  के कैसे  याद रहें.

जलने दो जो जलती मुस्कानों की होली,

इतने आंसू मत गिरो, नहीं मैं चुन पाऊँ.

 

किस किस उपवन के अंचल को दोगी वसंत, 

हर उपवन में पतझड़ का शाश्वत शासन है.

आकर्षित मुझको करो न दीपक से क्योंकि

शायद  प्रकाश के  बदले  निशा न  दे पाऊँ.

 

इस क्षणिक मिलन से अभिप्रेत है चिर वियोग,

इस चिर  अभाव में  चिर  तृप्ति का साधन है.

रहने  दो  उर में  आस  अधूरी  मिलने  की,

अमरत्व मिलन के बाद न स्वीकृत कर पाऊँ.

 

इतना  बंदी मत करो  मुझे अहसानों से,

कि आखिर को प्रतिदान नहीं मैं दे पाऊँ.

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kailash C Sharma on September 6, 2011 at 1:51pm

आभार अरुण जी....

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 8:47pm
ह्रदय के मधुर भाव बेहतरीन तरीके से इस रचना में प्रवाहित है कैलाश जी बधाई इस कविता हेतु !!
Comment by Kailash C Sharma on September 5, 2011 at 8:19pm

गणेश जी और सौरभ जी, रचना पसन्द करने और प्रोत्साहन के लिए आभार। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2011 at 5:11pm

इस क्षणिक मिलन से अभिप्रेत है चिर वियोग,

इस चिर  अभाव में  चिर  तृप्ति का साधन है.

रहने  दो  उर में  आस  अधूरी  मिलने  की,

अमरत्व मिलन के बाद न स्वीकृत कर पाऊँ.

 

वाह वाह, बहुत ही खुबसूरत रचना, कैलाश जी बधाई स्वीकार करे इस सारगर्भित अभिव्यक्ति पर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2011 at 10:34am

//इस क्षणिक मिलन से अभिप्रेत है चिर वियोग,

इस चिर अभाव में चिर तृप्ति का साधन है.

रहने दो उर में आस अधूरी मिलने की,

अमरत्व मिलन के बाद न स्वीकृत कर पाऊँ.//

पंक्तियाँ सहज ही आकर्षित करती हैं.

इस भाव-प्रवण रचना पर बधाई.

 

Comment by Kailash C Sharma on September 3, 2011 at 7:50pm

शुक्रिया अरुण जी..

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2011 at 3:08pm
ह्रदय की गहराई से निकली काव्य पंक्तियाँ अपना गहरा असर छोडती हैं | इस भाव प्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई कैलाश जी !!
Comment by Kailash C Sharma on September 3, 2011 at 3:04pm

शुक्रिया आशीष जी..

Comment by आशीष यादव on September 3, 2011 at 1:29pm

रहने  दो  उर में  आस  अधूरी  मिलने  की,

अमरत्व मिलन के बाद न स्वीकृत कर पाऊँ.

सुन्दर रचना के लिए बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service