Added by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 7:00pm — 1 Comment
कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 2:30pm — 7 Comments
अन्तर्मन में तू रम जाये,
सांस सांस तेरा गुण गाये।
कण कण में तुझको मैं देखूँ,
नज़र पराया कोई न आये।
द्वेष न हो कोई भी मन…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 8, 2011 at 2:32pm — 3 Comments
इतना बंदी मत करो मुझे अहसानों से,
कि आखिर को प्रतिदान नहीं मैं दे पाऊँ.
अहसान तेरे सदियों के कैसे याद रहें.
जलने दो जो जलती मुस्कानों की होली,
इतने आंसू मत गिरो, नहीं…
Added by Kailash C Sharma on September 2, 2011 at 8:00pm — 9 Comments
Added by Kailash C Sharma on August 29, 2011 at 8:00pm — 5 Comments
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