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दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
पानी-पानी हो रहे, पानी रहा न शेष.
जिन नयनों में- हो रही, उनकी लाज अशेष..
*
खैर रामकी जानकी, मना जानकी मौन.
जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन?
*
तुलसी तुलसी-पत्र का, लगा रहे हैं भोग.
राम सिया मुस्का रहे, लख सुन्दर संयोग..
*
सूर सूर थे या नहीं, बात सकेगा कौन?
देख अदेखा लेख हैं, नैना भौंचक-मौन..
*
तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.
कह रहस्य हमसे गये, गीता का नरपाल..
*
सिलक पहनकर गिन रहीं, सिलक सिठानी आज.
लक्ष्मी को लक्ष्मी गहे, आप न पूछें राज..
*
राज राज के काज का, गोपनीय श्रीमान.
श्री वास्तव में पाये बिन, श्रीवास्तव श्री-वान..
*
दीक्षित दीक्षित हैं नहीं, पर दीक्षा दें नित्य.
विस्मित होकर देखता, नभ से 'सलिल' अनित्य..
*
चकित दीप्ति की दीप्ति से, दीपक करे सवाल.
भूल तेल को पूजता, जग क्यों केवल ज्वाल??
*
तेल लगाते तेल बिन, कैसा है यह खेल?
बिन नकेल ही नाक में, डालें आप नकेल..
*
हार रहे जो खेल में, गेंद न पाते झेल.
सजा मिले कविताओं को, सुनें-गुनें चुप झेल..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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