मुक्तिका
अब हिंदी के देश में
संजीव 'सलिल'
*
करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.
गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..
ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में
बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.
मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..
'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.
नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..
माँ को भुला आंटियों के पीछे भरमाये बन नादां
मातृ-चरण-छवि उर में समो लो अब हिंदी के देश में..
मत सँकुचाओ जितनी आती, उतनी तो हिंदी बोलो.
नव शब्दों की फसलें बो लो अब हिंदी के देश में..
गले लगाने को आतुर हैं तुलसी सूर कबीरा संत.
अमिय अपरिमित जी भर लो लो अब हिंदी के देश में..
सुनो 'सलिल' दोहा, चौपाई, छंद सहस्त्रों रच झूमो.
पाप परायेपन के धो लो अब हिंदी के देश में..
*****
Acharya Sanjiv Salil
Comment
नव शब्दों कीफसलें बो लो....हिंदी हमारी मात् भाषा को ऊँचा उठाने के लिए साधुवाद संजीव सलिल जी
आदरणीय संजीव जी मै पहले भी कई बार आपको पढ़ चुकी हूँ शायद ई कविता ग्रुप पर भी आपको पढ़ा था। आपका लेखन हमेशा ही जबरदस्त रहा है।
मत सँकुचाओ जितनी आती, उतनी तो हिंदी बोलो.
नव शब्दों की फसलें बो लो अब हिंदी के देश में..
सादर-नमस्कार।
हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर हिंदी को सम्मानित करती इस रचना हेतु आचार्यजी सादर अभिनन्दन.
वैसे, हम गलत या सही, जिस जीवन-शैली को जी रहे हैं, उसकी भी अपनी मांग है. उन मांगों पर ध्यान न देना असहज भी तो है. चाहे कोई कितना ही नकारे आज का समय आज के संदर्भ में ही हो.
मेरा आशय निम्नलिखित पंक्तियों से है -
ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में ..
सादर.. .
आचार्य जी, काश यह देश हिंदी का देश बन पाता, तो हम हिंदी दिवस रोज मनाते, हालाकि हम लोग तो सभी सरकारी संचिका आदि हिंदी में ही निस्तारित करते है, जिससे सर्वोच्च स्थान पर बैठे प्रधान सचिव स्तर के पदाधिकारी भी संचिका पर हिंदी में ही लिखते है और आदेश इत्यादि भी हिंदी में ही निर्गत होते है |
बहुत ही खुबसूरत मुक्तिका की प्रस्तुति है बहुत बहुत आभार |
हम आपके इस हिंदी प्रेम से अभिभूत है ..विश्व हिंदी दिवस पर यह संकल्प लीजिये
अपनी मात्रभाषा हिंदी को नव जीवन देगे
आदरणीय आचार्य जी,
आज हमें हिंदी में सक्रिय होना ही चाहिए|
आपने हिंदी अपनाने हेतु सुन्दर वचन लिखा है|
नमन है आपको|
अजब अनुभूति होती है आपकी रचनाये पढ़कर बbloger पर niymit रूप से इनका आनंद लेता हू
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