एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
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हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.
बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?
हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर
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नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.
अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..
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बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.
मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..
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करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.
करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..
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खान-पान कर संतुलित, खा अजवाइन-पान.
सात्विक शुद्ध विचार रख, बन सद्गुण की खान..
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खिला, न दे तू सुपारी, मीत न करना भीत.
खेली जिसने सु-पारी, उसने पाई जीत..
खिला = खिला दे, खेलने दे -श्लेष.
सुपारी = खाद्य पदार्थ, हत्या हेतु अग्रिम राशि- श्लेष.
सु-पारी = अच्छी पारी.
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लीक पीटते रह गये, तजी न किंचित लीक.
चक्र प्रगति का थम गया, हवा हवा हुई लीक..
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धर उधार अधार में, मिलती बिन आधार.
वही धार मंझधार के, मध्य मिली साधार..
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आम लेट हरदम नहीं, खास नहीं पाबंद.
आमलेट खा रहे हैं, दोनों ले आनंद..
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भेद रहे दे भेद जो, सकल सुरक्षा चक्र.
छेड़ बंद कर छेड़ दें, उनको जो हैं वक्र..
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तनखा को तन खा गया, लेकिन मिटी न भूख.
सूख रहा आनन पिचक, कैसे रहे रसूख..
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Acharya Sanjiv Salil
Comment
सभी दोहे बहुत सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक लगे| कुछ दोहे जो मुझे खास पसंद आये वो,
बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.
मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..
करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.
करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..
तनखा को तन खा गया, लेकिन मिटी न भूख.
सूख रहा आनन पिचक, कैसे रहे रसूख..
नमन है आपकी लेखनी को जो इतनी shandaar ewan ज्ञानवर्धक रचना karti है|
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