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कान्हा से मिलोगी सखी ?
हँसते -खेलते राधा से कहा मैंने..
सदियों से प्रतीक्षा में बँधी
राधा बोली-हाँ सखी..पर कैसे ?


चल न सखी,छोड़ न
इस धाम ,इस वृक्ष को
चल चलके देखे कान्हा धाम
वे जरुर मिलेंगे तुझको !


ख़ुशी से झूम राधा
चली मिलने शाम को
मेरा मन हुआ गर्वित,सोचा-चलो
यह जीवन आया कोई काम तो !


पर!यह तो थे कृष्ण
कान्हा तो हमे मिले नहीं
राधा क्या गिला करती
राधा को कृष्ण जाने नहीं !


राधा ने कुछ कहा नहीं
रोई नहीं,गिड़गिड़ाई नहीं
कृष्ण को अपना परिचय
भी तो उसने दिया नहीं !


राधा का ह्रदय अंगार हुआ
रक्त उबलकर नीर बना
पीड़ित मुख से हँसकर कहा
चलो, यहाँ आना सार्थक हुआ !

तुम्हारी प्रतीक्षा क्या व्यर्थ गई ?
पूछा, तो सुन राधा हँस पड़ी..
मेरे गर्वित मुख को देख
हाथ पकड़ , मेरे साथ चली.... :)

सोचती हूँ..इस साक्षात्कार के बाद क्या मंदिरों में कृष्ण के साथ रहने वाली राधा की मूर्ति में उनकी आत्मा बसती होगी ?

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Comment by Anwesha Anjushree on October 9, 2011 at 5:50pm

Shukriya

Comment by आशीष यादव on October 2, 2011 at 12:51am

भावपूर्ण कविता है| बहुत कुछ कह रही है यह कविता|

मेरी बधाई स्वीकार करे इस प्रस्तुति के लिए|

कृपया ध्यान दे...

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