हसरते, अरमान
तिरस्कार, अपमान
इन्हें लक्ष्मण रेखा को न पार करने दो
या फिर इन्हें कैद करो ऐसे
यह सांस भी न ले पाए जैसे
और चाबी ऐसे दफनाओ
के खुद भी न ढुंढ पाओ
फिर उड़ो ,पंख फैलाओ
और जिओ, पहली बार ....
अपने लिए !
Comment
आदरणीया मैंने जो प्रतिक्रिया दी है वह आपकी रचना का अर्थ नहीं है बल्कि आपकी रचना जहाँ समाप् हुई है ठीक उसके आगे के भाव हैं जो मुझे तब आए जब आपकी कविता को पढ़ा .....
विचारमंथन में एक विचार यह भी .....
एक दृष्टिकोण यह भी ,,,
वीनस जी आप ने बिलकुल अलग अर्थ निकाला ! मैं तो दुःख और सुख से कही उचे स्तर पर पहुचने की बात कर रही हूँ ! जहाँ न दुःख हो , न सुख !साधू सा विचार ...आभार
रचना पढ़ने के बाद प्राथमिक भाव ......
हर इंसान के मन में होती है उन्मुक्तता की अभिलाषा
चाहता है सारे बंधन को तोड़ देना
मर्यादाओं को तहस नहस कर देना भी चाहता है
मगर फिर क्या इंसान, इंसान रहेगा ?
कहीं जानवर तो नहीं बन जायेगा ........
Shukriya Ajay ji mujhe padhne ke liye
Birodhabhasi nahi....satya ka darshan hai...manushya ke liye ese prat karna bahut mushkil hai....par agar prapt ho jaay...to phir.....:)
kafi birodhbhasi bhav he likin badia he badhai
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