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ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये...

आये हैं सभी आज तो जाने के लिये,

ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये.

 

तन्हाई भरे शोर ये कब तक मैं सुनूँ,

आ जाओ मुझे गीत सुनाने के लिये।

 

जल जल के मिरे दिल की ये शम्में हैं बुझी,

कोई भी नहीं फिर से जलाने के लिये।

 

जज़्बात की ये मौज उठी आज मुझे,

इक याद के दरिया में डुबाने के लिये।

 

सोये हैं वो 'इमरान' सुनाता है किसे,

चल हम भी चलें ख्वाब सजाने के लिये।

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Comment

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Comment by इमरान खान on December 7, 2011 at 2:11pm

सौरभ भैया! आपका हार्दिक धन्यवाद् .... ये एक रात की बात है ... मेरा एक दोस्त मुझसे बात नहीं कर रहा था ... और मैंने ये ये ग़ज़ल कह दी ...:)))))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2011 at 1:42pm

किन्हीं उकताये क्षणों की परिणति है. 

तन्हाई भरे शोर ये कब तक मैं सुनूँ,

आ जाओ मुझे गीत सुनाने के लिये।

ये शेर पसंद आया. 

Comment by इमरान खान on December 7, 2011 at 12:57pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया लता जी.

Comment by Lata R.Ojha on December 2, 2011 at 6:56pm

आये हैं सभी आज तो जाने के लिये,

ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये.

sundar abhivyakti hai Imraan ji :) 

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