For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने समझाया
सोना होना ज़रुरी है
मिट्टी का नहीं है मोल
सोना है अनमोल
मुझे खलिहानोँ में होना था
बारिश धुप में भिगोना था
पर भट्टी में जलाया गया मुझे
की लोगो की चाह में सोना था
पर मै मिट्टी था
मुझे मिट्टी ही होना था
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
क्या सोना होना इतना ज़रुरी है
क्या सोना फसल बनेगा
क्या सोना पेट भरेगा
क्या सोना आस्मा से बरसेगा
और बीजो में जीवन भरेगा
सोना कीमती है
पर मै भी हू अनमोल
पर मुझे इतना तपाया गया
की मै मिट्टी भी न रह सका
विचार मेरे जल गए
नसों में लड़ने की कूबत थी
सब भाप बन निकल गए
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
सासे लेना धडकना
दुनिया के रंग रंगना चहकना
ये मेरी ताकत थी
पर उसे समझ ना आया
जब भी तोला मुझे
उसने सोने के सिक्को से
हमेशा कम पाया
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
 
: शशिप्रकाश सैनी

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashiprakash saini on January 6, 2012 at 5:15pm

धन्यवाद नीलम जी 

Comment by Neelam Upadhyaya on January 6, 2012 at 10:12am

तथ्यो से भरीऔर संदेश देती बहुत ही शानदार रचना के लिए बहुत बधाई. कुछ स्थानो पर वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ थोड़ी अखरती है.

Comment by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 10:23pm

सराहना के लिए आभार आदरणीय अरुण जी 

Comment by Abhinav Arun on January 2, 2012 at 10:00pm
शानदार और सन्देश परक रचना के लिए हार्दिक बधाई शशि प्रकाश जी | इन पंक्तियों की ताकत को नमन है गहरे भाव हैं इनमें -
मिट्टी का नहीं है मोल
सोना है अनमोल
मुझे खलिहानोँ में होना था
बारिश धुप में भिगोना था
पर भट्टी में जलाया गया मुझे
... पर मै मिट्टी था
मुझे मिट्टी ही होना था
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका
हार्दिक बधाई आपको !
Comment by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 1:01pm

धन्यवाद सौरभ सर आपकी बात को ध्यान में रखूँगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 29, 2011 at 10:50am

अवस्था और तदनुरूप मनोदशा विशेष के अवसाद को उत्कीर्ण करती रचना. 

इस तरह की कविता में संयत रहना बहुत ही आवश्यक है. टंकण त्रुटियों या अक्षरी-अशुद्धि से बचा जाना उतना ही आवश्यक है.

 

रचना प्रस्तुतिकरण पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

 

Comment by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:22am

हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया गणेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2011 at 10:13am

//

पर मुझे इतना तपाया गया
की मै मिट्टी भी न रह सका
विचार मेरे जल गए
नसों में लड़ने की कूबत थी
सब भाप बन निकल गए
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका//
आदरणीय सैनी साहब, आपकी कविता बहुत ही संदेशपरक है, ईश्वर ने कुछ भी निरर्थक नहीं बनाया है, यदि उन्होंने किसी को धरती पर भेजा है, चाहे किसी भी रूप में तो अवश्य ही कुछ प्रयोजन होगा, सबका अपना अलग महत्व है, सोना और चैन से सोने में बहुत ही फर्क है, सोना से पेट नहीं भरा करता, 
कुल मिलाकर एक बहुत ही तथ्यपरक रचना की प्रस्तुति है, बहुत बहुत बधाई आपको |
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service