रात स्वप्न में, प्रभु थे खड़े
बोले मांगो वत्स क्या मांगते हो
जमीं चाहते हो या आस्मां चाहते हो
बड़ी गाडी बड़ा घर नोटों की गट्ठर
या सत्ता सुख कुर्सी से हो कर
जो चाहो अभी दे दूँ
एक नयी ज़िन्दगी दे दूँ
मैंने माँगा तो क्या माँगा
एक बेंच पुरानीं सी
वो पीछे वाली मेरे स्कूल की
चाहिए मुझे
वो बचपन के ज़माने
दोस्त पुराने
मदन के डोसे पे टूटना
चेतन का वो टिफिन लूटना
अपना टिफिन बचाने में
टीचर…
Added by shashiprakash saini on July 23, 2013 at 11:00am — 7 Comments
तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे
मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है
साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया
पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है
झुर्रियाँ बाल सफ़ेद
सब उम्र के फरेब
तन…
ContinueAdded by shashiprakash saini on March 10, 2012 at 2:00am — 7 Comments
आंधी हैं हवा हैं
बंधनों में क्या हैं
ये उफनता दरिया हैं
किनारे तोड़ निकला हैं
मस्ती में मस्तमौला हैं
मुश्किल में हौसला हैं
अपनी पे आजाए तो जलजला हैं
ये आज का युवा हैं
कभी बेफिक्री का धुआँ हैं
कभी पानी का बुलबुला हैं
कभी संजीदगी से भरा हैं
ये आज का युवा हैं
पंखों को फडफडाता हैं
पेडों पे घोंसला बनाता है
अब की उड़ना ये चाहता हैं
दाव पे ज़िंदगी लगता हैं
हारा भी…
ContinueAdded by shashiprakash saini on February 5, 2012 at 12:22am — 8 Comments
चल झूठ रूठना है तेरा
आंखें सब बतलातीं है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
आँखों से अब ना आस गिरा
बातों पे रख विश्वास जरा
जाने दे मत रोक मुझें
सर पे दुनियां दारी है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
न तू भूलीं न मैं भुला
जब झूलें थे सावन झुला
मौसम अब के बरसातीं है
कोयलिया जब गाती है
याद मीत की आती है
चलतें थे तट पे साथ प्रिये
नटखट हाथों में हाथ…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 19, 2012 at 4:00am — 2 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments
सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं
पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं
स्कूल की खिडकियों पे लगाए कान सुनता है
अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं
जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है
लोग…
Added by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है
जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे
पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है
वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है
उसके तराजू में सब एकसा तुलता है
भेद करे तो करे कैसे वो
न तो उसको तन दीखता है
न धन दीखता है
उसके दर्पण में बस मन…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 1, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
नये है रंग
रुत है नयी तस्वीर बनाने की
नये साज़ नयी आवाज़ में
कुछ नयी धुन गुनगुनाने की
नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की
खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की
नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की
जो बीता उसे सम्मान से विदा करे
और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की
लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की
दिलो से दूरियाँ मिटाने की
बस यही गीत गुनगुनाने की
:शशिप्रकाश सैनी
Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments
अपनी गलतियों का भोझ आप ही ढोता हूँ
Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 3:00am — No Comments
रातो के हो गए है पुजारी
कि दिन की खबर नहीं है
पैसे की है ये दुनिया
मेरा ये शहर नहीं है
दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना
ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना
आदमी अपने साये पे भी शक करता है
हाथ हाथ मिलाने से डरता है
पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ
की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ
नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी
बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी
हसी बेचीं है…
Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की
जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की
ये दुनिया है सब पैसे से चलते है
खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की
जो करते है लडकियों पे छीटा-कसी
न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की
हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं
नाराज़गी है न जाने किस रात की
किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"
किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की
: शशिप्रकाश…
ContinueAdded by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 11:00am — 1 Comment
भीड़ में सब मुखौटे है
इंसा कहा है
जिसकी सूरत पे सीरत दिखे
वो चेहरा कहा है
खिड़किया यु बंद करली है
की हम खोलते ही नहीं
दुनिया से करते है बात
पडोसियो से बोलते ही नहीं
न बगल में खुशी न मातम का पता
पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा
कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी
खिडकिया खोलोगे तो हवा…
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:29am — No Comments
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments
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