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तेरे साथ की जरुरत है

तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे

मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है

साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया

पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है

 

 

झुर्रियाँ बाल सफ़ेद

सब उम्र के फरेब

तन न भाया भाया मन

दिल में दिखा न ऐब

दिल-ए-जज़्बात को तेरे जज़्बात की जरूरत है

 

 

ईट पत्थर से कोई घर न बना है

पत्थर जड़ा के ताज में कोई सुन्दर न बना है

अपनों की दुआ मिले

तो घर भी बना ले

दिल जीत लाए तो सुन्दर भी बना ले

आशीर्वाद देता रहे उस हाथ की जरुरत है

 

 

है नयी दुनिया पर दस्तूर पुरानी

प्रेम सच्चा हो तभी चलती है कहानी

मै दिल से बात करता

तू भी दिल से बात कर

न मै किसी से डरता

न तू किसी से डर

दुनिया नयी होगी पर बात पुरानी

प्यार खरा हो तभी बढती है कहानी

 

 

: शशिप्रकाश सैनी

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Comment

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Comment by shashiprakash saini on March 13, 2012 at 7:09pm

सराहना हेतु आभार संदीप जी 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 7:39pm

आदरणीय शशिप्रकाश जी,

बहुत ही उम्दा भावों की प्रस्तुति| साभार,

Comment by shashiprakash saini on March 11, 2012 at 2:36am

आप सब ने मेरे भावो को सराहा इस के लिए दिल से आभारी हू 

सौरभ सर , आनंद जी , डॉ. प्राची जी और प्रदीप जी का धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 10, 2012 at 10:42pm

ईट पत्थर से कोई घर न बना है
पत्थर जड़ा के ताज में कोई सुन्दर न बना है
अपनों की दुआ मिले
तो घर भी बना ले

वाह !

दस्तूर संभवतः पुल्लिंग है. कृपया आश्वस्त होलें.

शुभेच्छा

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 10, 2012 at 6:52pm

ईट पत्थर से कोई घर न बना है

पत्थर जड़ा के ताज में कोई सुन्दर न बना है

अपनों की दुआ मिले

तो घर भी बना ले

दिल जीत लाए तो सुन्दर भी बना ले

आशीर्वाद देता रहे उस हाथ की जरुरत है

अपनो की दुआ बहुत ज़रूरी है. बधाई. 

Comment by shashiprakash saini on March 10, 2012 at 12:33pm

सराहना हेतु आभार मीनू जी 

Comment by minu jha on March 10, 2012 at 11:12am

सैनी जी

सच कहा आपने,साथी मनचाहा हो तो तकलीफें भी अच्छी लगने

लगती है,सुंदर रचना

कृपया ध्यान दे...

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