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"ख़ुशी"जब चाहत का इकरार होता है महबूब के नज़र में...

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Comment by Subodh kumar on September 12, 2010 at 1:15pm
dhanyabaad ashish jee
Comment by Subodh kumar on September 12, 2010 at 1:14pm
Dhanyabaad Bagi jee
Comment by Subodh kumar on September 12, 2010 at 1:14pm
dhanyabaad admin jee..
Comment by आशीष यादव on September 4, 2010 at 10:27am
सुबोध जी प्रणाम,
आप की यह ग़ज़ल सच मानिए तो मेरे ह्रदय को स्पर्श कर गयी है| बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल की उत्पत्ति| तसव्वुर का शानदार आलम पेश किया है आपने|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2010 at 10:07am
वाह शरद बाबू वाह, क्या मैं कहूँ समझ मे नहीं आ रहा है, आपने तो इस ग़ज़ल से कुछ जख्मों को हरा कर दिया और जन्नत के रंगत को बड़े ही करिश्माई अंदाज मे दिखा दिया है, बहुत ही सुंदर और उच्चे ख्यालात का ग़ज़ल पेश किया है आपने, बधाई स्वीकार करे |
Comment by Admin on September 3, 2010 at 8:42pm
आदरणीय सुबोध जी, सर्वप्रथम तो मैं ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहली रचना का दिल से स्वागत करता हूँ, उम्मीद है आगे भी आप की रचनाएँ और अन्य रचनाओं पर आपके बहुमूल्य टिप्पणी पढने को मिलेगी | आप ने बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कहा है, प्यार तो इक एहसास है जो महसूस किया जाता है, इस उम्द्दा अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार कीजिये |
Comment by Subodh kumar on September 3, 2010 at 8:15pm
yeh ghajal maine us ehsas ko man mein rakh kar likha tha ki jab kisi ki chahat koi achaanak maan leta hai..to uske man mein kitni khushi hoti hogi...

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