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दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,

दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,
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बात समझ मॆं आती है मगर,गुनॆ जानॆ कॆ बाद ।
शेर हल्का नहीं हॊता बारहां, सुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥१॥

नाम मिटाये नहीं मिटता चाहॆ आग मॆं जला दॊ,
चनॆ आखिर चनॆ ही रहतॆ हैं, भुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥२॥

मगरूरॊ तुम्हारा मिज़ाज, यकीनन बदल जायॆगा,
रुई भी बदल जाती है डंडॆ सॆ, धुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥३॥

इज्जत बचाना किसी की इतना आसान नहीं है,
कपड़ा भी बनता है चरखॆ पॆ बुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥४॥

तुम्हारी हर एक सांस का हिसाब रखता है वॊ,
क्या गिनॊगॆ उसकी गिनती गिनॆ जानॆ कॆ बाद ॥५॥

मॆरी आवाज़ कॊ चुनौती, न दॆना "राज" कॊई,
यॆ दब नहीं सकती दीवारॊं मॆ चुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥६॥

कवि-राजबुन्दॆली
१६/०१/२०१२See More

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 17, 2012 at 7:17pm

भाई साहब प्रणाम,,,,,,,,,,,,,आभारी हूं आपका,,,,,,,,,,,,,,,,,,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 17, 2012 at 3:39pm

//तुम्हारी हर एक सांस का हिसाब रखता है वॊ,
क्या गिनॊगॆ उसकी गिनती गिनॆ जानॆ कॆ बाद ॥५॥//

अटल सत्य !! वाह. 
.
//मॆरी आवाज़ कॊ चुनौती, न दॆना "राज" कॊई,
यॆ दब नहीं सकती दीवारॊं मॆ चुनॆ जानॆ कॆ बाद//

क्या जिंदादिली है इस शेअर में - आनंद आ गया.

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