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बन्दूक .....
एक भय है
एक डर है
लोगों को डराने की चीज है
मारने की नहीं ॥
इससे गोलीयाँ
शायद ही कभी निकलती हो ॥


जो इस बात को समझ गया
वह बन्दूक से नहीं डरता ॥
बल्कि ...
चाकू दिखाकर
छीन लेता है बन्दूक ॥

हमारे नक्सली
सरकारी बंदूकों की भाषा
अच्छी तरह पढ़ चूके है ॥

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Comment

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Comment by Ratnesh Raman Pathak on September 25, 2010 at 7:26pm
बबन जी आपकी ब्लॉग अछि है सहमत हु मैं आपसे लेकिन एक बात कहना चाहूँगा की हमें ये नहीं भूलना चाहिए की सीमा पर jo बंदूके हमारी रक्षा के लिए हमेशा आग उगलती रहती है या उगलने को तैयार रहती है ....वो बंदूके भी सरकारी है .इसलिए मैं तो कहूँगा सरकारी बन्दूको में खामिया नहीं है और नहीं उन्हें चालाने वालो में .....दोष तो उनका है जिन्होंने ने उन नाक्सालियो को पनाह दे रखा है .इसके लिए मेरे पास बहुत से उदहारण भी है लेकिन मैं लिख नहीं रहा हु.हम इंसानों को नाक्सालियो से बैर है ,तो क्या वो जो उन सरकारी बन्दूको को ढो रहे है ,उन्हें बैर नहीं है ,वो भी तो हमारी तरह इंसान है ....लेकिन सबकुछ हमारे प्रणाली का दोष है

रत्नेश रमण पाठक
Comment by Shaileshwar Pandey ''Shanti'' on September 25, 2010 at 6:42pm
Aaj ke parevesh anusar aap ki kavita bilkul sahi hai...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2010 at 10:27am
बब्बन भैया आपके कविता के अंतिम पैरा मे कही गई लाइन पर मेरा गहरा आक्रोश है, "हमारे नक्सली" बिल्कुल ग़लत ये नक्सली हमारे नही है, ये तो भारत के एकता एवम् प्रभुत्वता के लिये ख़तरा है, ये ना हमारे थे ना है और ना कभी हमारे होंगे,

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