चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १० में आदरणीय सौरभ बड़े भईया द्वारा अनुष्टुप छंद के विषय मे दी गयी बहुमूल्य जानकारी के आधार पर यह व्यंग्य प्रयोग प्रस्तुत है...
|
समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे |
राम युग बसाएंगे, ख्वाब अब दिखा रहे ||
भेद भूल गये सारे, कौन जन गरीब हैं |
झोपडियां सभी जाएँ, मिलता जो चबा रहे ||
ढोयें सर धमेले भी, खाट पर पड़े रहें |
पैर छाले खिलें भी तो, मंद वो मुसका रहे ||
श्रम करें किसानों सा, पौधे रोप रहे अभी |
मौज कर बिताएंगे, पांच वर्ष मना रहे ||
‘हबीब’ जानता भी है, कितना कौन गैर है |
सभी यहाँ रियाया को, चूना नित लगा रहे ||
(क्या ऐसा प्रयोग उचित होगा? साथ ही आदरणीय गुरुजनों/सुधीजनों से त्रुटियों को रेखांकित कर इस मनमोहक छंद को समझने में मदद करने का सादर निवेदन )
सादर
संजय मिश्रा 'हबीब'
Comment
आदरणीय सौरभ बड़े भईया, अनुष्टुप छंद के सम्बन्ध में आपकी सहज व्याख्या से ही इसके शिल्प की बातें कुछ कुछ साफ़ हुई हैं... अनुज का यह प्रयास आपके अनुमोदन से सम्मान पा गया... स्नेहाधीन बनाए रखकर मार्गदर्शन करते रहें. सादर.
आदरणीय आलोक सर, आप जैसे छंदशाष्त्री की सराहना से मन प्रसन्न हो गया... ओ बी ओ में आकर आप सब गुरुजनों के मार्गदर्शन में कुछ सिखने प्रयासरत हूँ. आपका सादर आभार.... स्नेह बनाएं रखें आदरणीय.
आदरणीया मोहिनी जी, सादर आभार.
छंद की बानगी उम्दा, दीखता है प्रयास भी
कोशिशें रंग लायें यों, तो मन भी रमा रहे .. .
भाई संजय ’हबीब’जी, आपकी कोशिश एकदम से मुग्ध कर गयी है. एक तो आपका विषय ही मौजूँ है, दूसरे छंद का निर्वहन भी बहुत ही दुरुस्त ढंग से हुआ है. छंद के शिल्प के प्रयोग में आपने अपेक्षित सावधानी तो बरती ही है, इसमें व्यंग्यात्मक धार देकर इसे आज के हिसाब से रुचिकर बना दिया है.
आपके इस प्रयास पर मैं हृदय से आपको बधाई देता हूँ. आपका प्रयास कई-कई लिखने वालों के लिये उत्प्रेरण और उदाहरण होना चाहिये.
हबीब जी, आज हृदय वाकई प्रसन्न है. हार्दिक शुभकामनाएँ.
लोकतंत्र बचाओ भी, समाज को सिखा रहे.
अनुष्टुपी प्रयासों से, भाई हबीब गा रहे..
छंदों में निखार आता जा रहा है, बहुत-बहुत बधाई !
राम युग बसायेंगें ख्वाब अब दिखा रहे ..... झोंपडियां सभी जाएँ मिलता जो चबा रहे ...बहुत सटीक रचना |सच कड़वा ही होता है |
सादर आभार आदरनीय बागी भाई....
सही कहा आपने... छंद मर्मज्ञों का स्नेहिल मार्गदर्शन न केवल रचना का और उसमें सकारातमक सुधार का स्त्रोत होता है बल्कि मुझ जैसे विद्यार्थियों को सही दिशा में चलने हेतु प्रेरित भी करता है...
सादर.
छंद की बात छंद के जानकार करेंगे, पर कथ्य बहुत ही उम्दा है, बात थोड़ी तीखी कही है किन्तु सत्य है, प्रस्तुति शानदार, बधाई स्वीकार करें |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online