सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से -
.
छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,
छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||
.
__________________________________
सादर प्रस्तुत है "छन्न पकैया" पर एक अनगढ़ प्रयास....
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, पग पग में भरमाये,
अपने घर की राजनीत को, कोई समझ न पाये ||१||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, पांच बरस का फेरा,
अमावस्य का कैदी बनकर, तडपा जाय सवेरा ||२||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, नाच रही महंगाई,
दिल्ली बैठी ताक रही है, 'श्री - वाहन' की नाईं ||३||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, चारा खा धमकायें,
जाने कब खुश हो पाएंगी, पटना की सब गायें ||४||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कितने और तिहाडी.
सभी जुटे हैं आज बचाने, अपनी अपनी बाडी ||५||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हेमचिडा था न्यारा,
पंख सुनहरे तोड़ तोड़ कर, करते सब बँटवारा ||६||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न बजा था चांटा,
रीत पुरातन सीख निकालें, कांटे से अब काँटा ||७||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, बूढा एक पुकारे,
सारा भारत साथ खडा हो, अम्बर में ज्यों तारे ||८||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, बचे न भ्रष्टाचारी,
दिल्ली की संसद पर भैया, जनसंसद हो भारी ||९||
__________________________________
छन्न पकैया, छन्न पकैया, तीन रंग लहरायें,
विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, मिलके सारे गायें ||१०||
__________________________________
______________________________________
- संजय मिश्रा 'हबीब'
Comment
भाई हबीब जी, आदरणीय योगराज जी के प्रयास को आपने इस रचना द्वारा बहुत ही आगे बढाया है, कथ्य और शिल्प बहुत ही बढ़िया लगे बधाई स्वीकार करें |
सर्वादरणीय सौरभ भैया जी, मोहिनी जी, योगराज भईया जी, नीरज जी, धरम भाई जी... आप सब की सराहना उत्साह का संचार कर रही है... अत्यंत आभार आदरणीय दादा मुनि जी का इस मनभावन छंद को पुनर्जीवित कर मंच पर प्रस्तुत करने और एक नई धरातल प्रदान करने हेतु....
छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न छन्न गिरधारी,
अपनी किरपा रखे सभी पर, सरस्वती महतारी ||
जय ओ बी ओ | जय गिरधारी.
बहुत सुन्दर और सफल प्रयास ! ’छन्न पकैया’ का कलेवर कितना सजा-निखरा है कि कई विन्दु समाहित होते चले गये हैं. संजय भाई , आपकी रचना विषय-आयाम के कारण मुग्ध करनेवाली तो है ही, यह पद्य रूप के लिहाज से भी गठी हुई है. इस हेतु विशेष बधाई.
छन्न-पैकया की पकड़ घर की राजनीति से देश की राजनीति तक पहुँच गई ,बेटी की किलकारी को भी स्वर मिल गया |बधाई आदर णीय योगराज प्रभाकर जी को ,सभी सदस्यों को इस विधा से परिचित कराने के लिये |
छन्न पकैया, छन्न पकैया, झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ,
संजय भाई हरेक छंद पे, वारी वारी जाऊँ
प्रिय संजय भाई, इस बेहद दिलकश लोक काव्य विधा पर आपको कलम आजमाई करते देख मन झूम झूम जा रहा है. इतनी प्रसन्नता हो रही है कि ब्यान नहीं कर पा रहा हूँ. विश्वास करें कि मैं एक एक छंद को कई कई बार पढ़ चुका हूँ, लेकिन दिल नहीं भर रहा. आपने जिस संजीदगी से विभिन्न विषयों पर छंद कहे हैं वह अपनी मिसाल आप हैं. दरअसल इस मृतप्राय: विधा को यदि नवजीवन देना है तो ऐसे ही संजीदा प्रयासों की आवश्यकता होगी. १० छंदों में १० अलग अलग रंग और कलेवर लेकर आपनी बात को कहना आपनी प्रौढ़ साहित्यक सोच का परिचायक है. मैं इस सद्प्रयास के आपने तह-ए-दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ.
आदरणीय संजय मिश्रा हबीब जी, आपके इन छन्न पकैया ने तो कमाल कर दिया. एक से बढ़ कर एक. चाहे दूषित राजनीति हो, कुत्सित मानसिकता हो या फिर बढती महंगाई....सभी को अपनी चपेट में ले गयी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये मित्र. जय गिरधारी.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online