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मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,
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उछलॊ मत यार ज़रा,हालात तॊ समझॊ ॥
मैं कह रहा हूं कि, मॆरी बात तॊ समझॊ ॥१॥


बाल की खाल निकालनॆं मॆं क्यूं लगॆ हॊ,
अरॆ मॆरॆ इस दिल कॆ ज़ज़्बात तॊ समझॊ ॥२॥


रदीफ़, काफ़ियॆ, ज़ॆर,ज़बर, न दॆ्खॊ अब,
कितनॆं वज़न मॆं हैं, ख्यालात तॊ समझॊ ॥३॥


किचॆन मॆं है गैस, मगर स्टॊव सॆ जली,
दहॆज़ नहीं लाई हॊगी,वारदात तॊ समझॊ ॥४॥


जॊ फ़क्त ससुराल मॆं ही,फटॆ ऎसा स्टॊव,
बनानॆ वाली कंपनी, की जात तॊ समझॊ ॥५॥


कलम कॆ सिपाही हॊ,"राज"फ़िर भी तुम,
जवाब सॆ पहलॆ मॆरॆ,सवालात तॊ समझॊ ॥६॥


कवि- राज बुन्दॆली,,,,,,
०६/०२/२०१२

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 7, 2012 at 6:07pm

धन्यवाद,,,,,,,,,,आप सब का आभारी हूं,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Nazeel on February 7, 2012 at 6:02pm

वाह क्या बात है आदरणीय राज  जी ....सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 7, 2012 at 5:04pm

धन्यवाद,,,,,,,,भाई साहब,,,,,,,,,,,,,,,,

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