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मेरे मन ,

बसंत के गाँव चल तो सही

सब कुछ है वहीं

उमंग उल्लास का गाँव है, रे 

प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ है वहीं |


सावंरिया की बंसी है

गोपियों का रास

रस से भरी राधा है

मदमाता मधुमास |


प्यार की मनुहार में पगा

सतरंगी यौवन है

गौरी की गारी को

झेल रहे बनवारी हैं |


नेह की पिचकारी है

रंगों की बौछार है 

पोखर पड़े गालों पे

चटक गुलाबी प्यार है |


वंशी की लय पे छिड़ा

फागुन का अभिसार है

सखा नंदलाल भये पलाश

वृषभानु लली भई गुलाल है |


बहकी-बहकी राधा है

चहंके-चहंके मुरारी

जोरी-बरजोरी है 

बुरा न मानों होरी है |


मोहिनी चोरड़िया 


  

  

  

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Comment

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Comment by prabhat kumar roy on May 3, 2012 at 9:22am

मोहनी जी की श्रेष्ठ रचना मन को बहुत भा गयी और मेरा स्वर यकायक फूटा....

चल मेर मन फिर आग लिए

मन में गहरा अनुराग लिए

Comment by mohinichordia on February 23, 2012 at 3:14pm

  शुक्रिया आशा पाण्डेय जी आशुतोष जी 

Comment by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:11pm

बहुत सुन्दर  मनभावन लुभावन रचना 

कृपया ध्यान दे...

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