सावन आया पिया, मन भाया पिया
प्यार के रंग में रंगी धानी चूनर
मंगा दो पिया
प्यार का रंग कितना गहरा?
में भी जानूं पिया…
ContinueAdded by mohinichordia on July 26, 2015 at 7:30am — 2 Comments
मैं
तन्हा, खामोश बैठी,
एक दिन
निहार रही थी
अपना ही प्रतिबिम्ब
खूबसूरत झील में,
कई पक्षी
क्रीड़ा कर रहे थे
नावों में बैठे
कई जोडे़
अठखेलियाँ करती
सर्द हवा को
गर्मी दे रहे थे
झील के किनारे खडे़
ऊँचे-ऊँचे दरख्त
भी हिल रहे थे,
गले मिल रहे थे
तभी एंक चील ने
अचानक तेजी से
गोता लगाया
किनारे आई मछली को
मुँह मे दबा
जीवन क्षणमंगुर है
यह एहसास…
ContinueAdded by mohinichordia on February 1, 2014 at 12:02pm — 10 Comments
आज
तुम्हारा प्यार
बना रहा साथ मेरे
साये की तरह
चलता रहा साथ
जहां-जहां मैं गई ।
देता रहा दिलासा
अकेले उदास मन को
जैसे तुम देते थे
मेरे कंधे पर प्यार से थपकी
उसी तरह का दुलार
आज फिर महसूस किया मैंने
जब सांझ की उतरती
गहरी उदासी ने
घेर लिया मन को मेरे ।
तुम ही नहीं
तुम्हारा प्यार भी जानता था
कि सांझ,
मुझे उदास कर देती है ?
शायद इसीलिए,
साये की…
ContinueAdded by mohinichordia on January 20, 2014 at 9:00am — 10 Comments
पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने
दूसरी पतंग…
ContinueAdded by mohinichordia on January 7, 2014 at 10:30am — 8 Comments
जब आसमान में काले बादल
नज़र आते हैं
जब रात स्याह और घनी हो जाती है
कोई पथ नहीं दिखता
डर बढ़ जाता है
स्वयं को खोने का
तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है
मैं तुम्हारे साथ हूँ
जब दर्द बढ़ जाता है
पीड़ा घनीभूत हो
आँसू बन ढुलकती है
गालों पर मोती सी
तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है
मैं तुम्हारे साथ हूँ
जब मेरे ही
मुझे प्रताडित करते हैं
मुझ में विश्वास नहीं कर
मुझे निराश करते…
ContinueAdded by mohinichordia on November 1, 2013 at 3:18pm — 12 Comments
Added by mohinichordia on October 21, 2013 at 7:15am — 18 Comments
Added by mohinichordia on November 18, 2012 at 9:05am — 3 Comments
पावापुरी में राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में प्रभु महावीर की अन्तिम अनुत्तर पावन दिव्य देशना - सम्पूर्ण जीव जगत को अभय प्रदान करती विश्व कल्याणकारी, अमृत प्रदायिनी वाणी का पान अवश्य करें | दीपावली के ,प्रभु महावीर के निर्वाण कल्याणक की पावन वेला के इस शुभ अवसर पर हम हमारे मन में उजाला भरें | आओ ! प्रकाश की ओर चलें |
Added by mohinichordia on November 13, 2012 at 5:00pm — 4 Comments
मेरे मन ,
बसंत के गाँव चल तो सही
सब कुछ है वहीं
उमंग उल्लास का गाँव है, रे
प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ…
Added by mohinichordia on February 18, 2012 at 11:16am — 3 Comments
सुस्त वृक्ष का जीवन बोला
क्या होगा अब मेरा ?
खिर गए सब पान पल्लव
सूख गया रस मेरा |
खडा रहा वह ठूँठ सा
कुछ मुरझाया कुछ सुस्ताया
समय गुजरा, पास की मिटटी में उग आयी
एक बेल ने,…
ContinueAdded by mohinichordia on February 16, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
जब उठाया घूंघट तुमने,
दिखाया मुखड़ा अपना
चाँद भी भरमाया
जब बिखरी तुम्हारे रूप की छटा
चाँदनी भी शरमायी
तुम्हारी चितवन पर
आवारा बादल ने सीटी बजाई ।
तुमने ली अगंड़ाई, अम्बर की बन आई
तुमसे मिलन की चाह में फैला दी बाहें,
क्षितिज तक उसने
भर लिया अंक में तुम्हें, प्रकृति, उसने
तुम्हारे…
Added by mohinichordia on February 7, 2012 at 6:30am — 10 Comments
स्त्री और प्रकृति
प्रकृति और स्त्री
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को
दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं
प्रेम लुटातीं उन…
Added by mohinichordia on January 14, 2012 at 10:30am — 9 Comments
Added by mohinichordia on January 8, 2012 at 8:47am — 8 Comments
मेरे मन !
तुमने अपनी खुशी खो दी ?
मायूस हो गये,
मुर्झा गये ?
किसी ने तुमको झिड़का
या दर्द दिया,
अपमानित, प्रताड़ित किया और
तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?
क्यों किसी की ओछी बातों से ,
अपशब्दों की बौछार से,
कठोर शब्दों के तीरों से
छलनी हो गये ?
कमज़ोर हो गये ?
समझना, वो शब्द
तुम्हारे लिए थे ही नहीं
सिर्फ किसी को अपने
दिल की कड़वाहट निकालने का
माध्यम मिल गया था ।
सुना…
ContinueAdded by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,
दूसरी पतंग धराशायी
हो गई
दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी
फिर मांझा चढ़ाया
और दूसरे ही क्षण
उसकी शहजादी करने…
ContinueAdded by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments
मेरे भीतर एक आकाश
कई सूर्य ,कई चन्द्र ,कई आकाशगंगाएं
तारों की झिलमिलाहट
उष्णता, शीतलता, धवलता, कलुषता भी
संवेग, आवेग, आवेश का फैलाव
तो
प्यार, प्रेम, सुख और
आनंद की लहर भी…
ContinueAdded by mohinichordia on December 22, 2011 at 2:00pm — 5 Comments
वो पल सबसे अच्छे थे
जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।
खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ
उन सांसों की सरगम से
मन को भिगो लेती हूँ
वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है
उन स्मृतियों से आँखों को
नम…
ContinueAdded by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
पता नहीं,
शायद यहीं कहीं ,
नहीं- नहीं ,
यहीं
आसपास ही कहीं ,
क्योंकि ,
तुम्हारी सुगंध ,तुम्हारी सुवास ,
कलियों में चटकती है ,
फूलों में बसती है…
ContinueAdded by mohinichordia on November 28, 2011 at 12:00pm — 1 Comment
भोर
Added by mohinichordia on November 11, 2011 at 9:00am — No Comments
श्री रामचंद्र जी के अयोध्या लौटने पर उनके स्वागत में एक गीत -
हेली मंगल गाओ आज ,
सहेली मंगल गाओ आज |
ढोल नगाड़ा नौपत बाजे
अयोध्या में आज
तोरण द्वार सजे सब आँगन
कौशल्या घर आज |
मोत्यां चौक पुरावो है सखी
झिलमिल आरती थाल
रामचंद्र जी लौटेंगे सखी
सीता लखन संग आज |
शुभ घड़ी आई भ्राता मिलाई
दशरथ के घर आज
भरत की तपस्या लायेगी
सखी ! खुशियों का अम्बार…
ContinueAdded by mohinichordia on October 21, 2011 at 9:00pm — No Comments
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