जब आसमान में काले बादल
नज़र आते हैं
जब रात स्याह और घनी हो जाती है
कोई पथ नहीं दिखता
डर बढ़ जाता है
स्वयं को खोने का
तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है
मैं तुम्हारे साथ हूँ
जब दर्द बढ़ जाता है
पीड़ा घनीभूत हो
आँसू बन ढुलकती है
गालों पर मोती सी
तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है
मैं तुम्हारे साथ हूँ
जब मेरे ही
मुझे प्रताडित करते हैं
मुझ में विश्वास नहीं कर
मुझे निराश करते हैं,
जब सपने टूटते हैं
कोई कंधा नहीं मिलता
सिर रखकर रोने को
दिलासा देने को,
जब मार्ग अनजाने होते हैं
बाधाएं सिर उठाती हैं
अपने पराये हो जाते हैं
तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है
मैं तुम्हारे साथ हूँ
मैं यहां हूँ
मृग के अंदर कस्तूरी की तरह छिपी
ऊर्जा से परिपूर्ण
नये अर्थ, नई संभावनाएँ लिए
बाहर की भटकन छोड़ो
मेरी ओर देखो,
मैं यहां हूँ
अतल गहराइयों में दबी
वह अंतस की शक्ति
मुझे बल देती है
मैं फिर चल पड़ती हूँ
पहले से अधिक दृढता से
आगे बढ़ती हूँ
लक्ष्य की ओर जो है ..
मानवता की महानता को पाने का
नये द्वार, नये नये पथ दिखते हैं,
कोई अलौकिक धवल किरण
प्रकाशित कर जाती है
उस पथ को
और मैं नये रूप मैं
जीवन को
देखने लगती हूँ |
मोहिनी चोरडिया
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
आप सब का हार्दिक धन्यवाद , वंदना जी, सुशील जी, राम शिरोमणि जी, सौरभ पाण्डेय जी, विजय मिश्र जी, अरुण निगम जी,
गिरिराज जी , जितेन्द्र जी , विजय जी, आखंद गहमारी जी. बहुत समय के बाद लौटी हूँ अतः देर .से आभार व्यक्त कर पाई , माफ करेंगे |
आत्मविश्वास जगाती रचना का कथ्य अच्छा लगा आदरणीया।
सादर बधाई इस सुंदर रचना के लिए।
सादर
सचमुच आपकी लेखनी प्रभावित करने में सक्षम है.... इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आ0 मोहिनी जी....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया मोहिनी जी आपको बहुत बहुत बधाई …सादर
दृढ़ विश्वास को शब्द देते भाव अच्े लगे हैं, आदरणीया.
सादर
अंतर्मंथन से निकला सुन्दर मोती, वाह !!!!!!!!!!!!!!
शुभ दीपावली...........
अंतरस्थ वेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीया मोहिेनी जी।
सादर,
विजय निकोर
मन की अंतर वेदनाओं को, इन सार्थक पंक्तियों में बड़ी ही सुन्दरता से संजोया है आपने, बहुत बहुत बधाई आदरणीया मोहिनी जी
आदरणीया मोहिनी जी , अंतस की आवाज या कहूँ आत्मा की आवाज़ को बहुत अच्छे से परिभाषित किया आपने !!! ये आवाज़ आती तो सब को है पर सुनते बहुत कम ही हैं !!!! आप सुन पायीं आप भाग्य वान हैं !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!
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