For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन की क्षणमंगुरता

मैं

तन्हा, खामोश बैठी,

एक दिन

निहार रही थी

अपना ही प्रतिबिम्ब

खूबसूरत झील में,

कई पक्षी

क्रीड़ा कर रहे थे

नावों में बैठे

कई जोडे़

अठखेलियाँ करती

सर्द हवा को

गर्मी दे रहे थे

झील के किनारे खडे़

ऊँचे-ऊँचे दरख्त

भी हिल रहे थे,

गले मिल रहे थे

तभी एंक चील ने

अचानक तेजी से

गोता लगाया

किनारे आई मछली को

मुँह मे दबा

जीवन क्षणमंगुर है

यह एहसास कराया

आज जो प्रतिबिम्ब

दिखे थे पानी में

कल वो रहेंगे या नहीं,

यह समझाया ।

अगले दिन झील पर

अलग ही समां था

न सर्द हवा

न दरख्तों का हिलना

झील के ठहरे से

पानी में

कश्तियों का बहना

थोड़ा कोलाहल,

ठहरी कश्ती में बैठी मैं

निहार रही थी

झील के पानी में

गोता लगाते

सूरज के प्रतिबिम्ब को

शान्त नीरव सांझ की

उतरती पालकी को ।

कुनमुनाती धूप,

विदा हो रही थी

झील के चमकते पानी पर

रात अपना डेरा डाल रही थी

सूरज एक दिन

निगल चुका था ।

मोहिनी चोरडिया चेन्नई

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

 

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2014 at 11:29pm

सही शब्द क्षणभंगुर है. इससे क्षणभंगुरता न कि क्षणमंगुरता.

संप्रेषणीयता पर तनिक प्रयास बहुत कुछ सार्थक करता जायेगा, आदारणीया..

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2014 at 10:45am

जीवन की क्षणभंगुरता का वास्तविक एहसास जब हृदय करता है तो नज़रिया कैसे बदलने सा लगता है..इस बात को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आदरणीया मोहिनीचंद्रा जी..

सिर्फ कुछ एक जगह पन्क्चुएशन मार्क्स की और आवश्यकता है ताकि प्रस्तुति प्रवाह में निर्बाध स्पष्ट होती जाए.

सादर शुभकामनाएं 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:33pm

बहुत ही सुंदर रचना, बधाई बधाई

Comment by mohinichordia on February 3, 2014 at 5:24pm

आप सबका आभार .

Comment by बृजेश नीरज on February 2, 2014 at 10:26pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by coontee mukerji on February 2, 2014 at 3:31pm

बहुत सुंदर व दार्शनिक रचना है.....आपको बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 9:54am

वास्तविकता को बयां करती रचना पर , हार्दिक बधाई आदरणीया मोहिनी जी

Comment by Vindu Babu on February 2, 2014 at 4:15am

 जीवन की क्षण भंगुरता को छोटी-छोटी घटनाओं में अनुभव करवाती हुई अच्छी रचना बन पड़ी है आदरणीया।

आपको बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति के लिए।

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2014 at 8:47pm

आदरणीया , जीवन के एक सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये आपको हार्दिक से बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on February 1, 2014 at 8:18pm

आओ मोहिनी जी बहुत सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service