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मेरे मन  !

तुमने अपनी खुशी खो दी ?

मायूस हो गये,

मुर्झा गये ?

किसी ने तुमको झिड़का

या दर्द दिया,

अपमानित, प्रताड़ित किया और

तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?

क्यों किसी की ओछी बातों से ,

अपशब्दों की बौछार से,

कठोर शब्दों के तीरों से

छलनी हो गये ?

कमज़ोर हो गये ?

समझना, वो शब्द

तुम्हारे लिए थे ही नहीं  

सिर्फ किसी को अपने

दिल की कड़वाहट निकालने का

माध्यम मिल गया था ।

सुना होगा, जो जिसके पास होता है,

वही तो देता है ?

जीवन हार मानने का नाम नहीं,

संघर्ष भी इसे मत समझना

मान अपमान से ऊपर उठकर,

शांत बन जाओ ।

उन, कड़वी बातों को

अपने ऊपर से, ऐसे गुज़र जाने दो

जैसे आवारा बादल,

बस! जैसे ही उन

घने काले बादलों की पर्त हटेगी

तुम सूरज की तरह निकल आना

नहाये, धोये से,

स्फूर्त तरोताज़ा ।

  • मोहिनी चोरडिया 

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Comment

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Comment by mohinichordia on January 21, 2012 at 6:56am

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 2:42pm

आदरणीया मोहिनी जी, आपकी कविता मुक्तछंद में होने के बावजूद एक प्रवाह लिए हुए हैं. इस सन्देश परक रचना के लिए मेरा दिली साधुवाद स्वीकार करें. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:05am

काश यह गुर हम सभी सीख पाते, जीवन कितना सरल हो जाता, सुन्दर रचना मोहिनी जी , बधाई स्वीकार करें |

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 7:37pm
Bahaut sunder prastuti..ek prernaprad rachna
Comment by satish mapatpuri on January 4, 2012 at 9:15pm

क्यों किसी की ओछी बातों से ,

अपशब्दों की बौछार से,

कठोर शब्दों के तीरों से

छलनी हो गये ?

कमज़ोर हो गये ?

आज के दौर में ऐसी ही सकारात्मक सोच की जरुरत है ..................... बहुत सुन्दर ........... दाद कुबूल फरमाएं मोहिनीजी
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 4, 2012 at 5:20pm

किसी ने तुमको झिड़का

या दर्द दिया,

अपमानित, प्रताड़ित किया और

तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?

सुन्दर सन्देश देती है आपकी रचना आदरणीया मोहिनी जी, इस सार्थक रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 4:16pm
मन को तसल्ली देती रचना मोहिनी जी आज के दौर में इस मन को ही सोचिये क्या क्या सुनना - सहना पड़ता है | परन्तु सकारात्मक सोच ज़रूरी है | और आपकी कविता यही सन्देश देती है |

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