मेरी कोख नहीं हुई
अभी तक उजली
क्योंकि उसने दी नहीं
मुझे, अभी तक एक बेटी
कहते हैं, बेटा बाप के
बुढ़ापे की लाठी होता है ।
लगती है पुरानी बात
मैं तो देखती हूँ
बेटियों को माँ-बाप के लिए
व्यथित होते
उनका दर्द, उनका संघर्ष समझते, और
बेटों को, अपने स्वयं के परिवार
या दोस्तों के साथ समय बिताते
गुलछर्रे उड़ाते
तब लगता है, काश !
मेरी भी एक बेटी होती ।
बेटी होती है माँ के करीब
कोख से बाहर आने के बाद
भी, उसी नाल से जुड़े होने का
एहसास कराती ।
माँ से जो मिली थी,
उसी मधुरता को वापस लौटाती
माँ के मन की व्यथा
बेटी से अधिक कौन समझेगा ?
बेटी पिता के भी, हो जाती है, करीब
जब, पिता उसे ‘‘हौसलों की उड़ान’’
का स्वाद चखाता है
सपनों से अलग दुनियां
के व्यवहार सिखाता है
अन्दर की दुनियां माँ को,
बाहर की पिता को,
समर्पित कर, बेटियाँ उड़ जाती हैं
पंछियों की तरह
किसी और की दुनियां आबाद करने
चली जाती हैं
दूसरे कुल की रौनक बन
उसका वंश बढ़ाती हैं
देहरी का दीप बनी रहतीं
फिर भी माँ के करीब
होती है बेटियाँ |
मोहिनी चोरडिया
Comment
aseem dard se likhi gai rachna .. hardy ko chho gai
धन्यवाद शुभम जी
अन्दर की दुनियां माँ को,
बाहर की पिता को,
समर्पित कर, बेटियाँ उड़ जाती हैं....
bahut hi sundar panktiyan...
aisa nahi hai ki bete apne mata pita k liye kuch nahi karte lekin betiyon ki to baat hi alag hai....
इस संवेदनशील काव्य अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया मोहिनी जी.
इस भाव-प्रवण और तथ्यात्मक रचना के लिये हार्दिक बधाई, मोहिनीजी. कुछ बातें कितनी सनातन होती हैं लेकिन हम सहज स्वीकारते हिचकते हैं. आपकी प्रस्तुत पंक्तियों को मैं विशेष रूप से रेखांकित कर रहा हूँ -
कहते हैं, बेटा बाप के
बुढ़ापे की लाठी होता है ।
लगती है पुरानी बात
मैं तो देखती हूँ
बेटियों को माँ-बाप के लिए
व्यथित होते
उनका दर्द, उनका संघर्ष समझते, और
बेटों को, अपने स्वयं के परिवार
या दोस्तों के साथ समय बिताते
गुलछर्रे उड़ाते
तब लगता है, काश !
मेरी भी एक बेटी होती ।
बहुत सुन्दर रचना है मोहिनी जी
बधाई स्वीकारे
दूसरे कुल की रौनक बन
उसका वंश बढ़ाती हैं
देहरी का दीप बनी रहतीं
फिर भी माँ के करीब
होती है बेटियाँ |...AAPNE TO BHAV-VIBHOR KAR DIYA मोहिनी JI.
waah bahut khoob likha hai Mohini ji
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