For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दस फागुनी दोहे -

दस फागुनी दोहे -

मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,

नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |

 

हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,

मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |

 

गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,

तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |

 

रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,

मेरा मन सकुचा गया था अंतर में खोट |

 

होली होला होलिका सारे हैं उन्मुक्त ,

जिसका मुंह काला हुआ वही हो गया भुक्त |

 

खेत बगीचे देखिये फैले कितने रंग ,

फागुन होली खेलता आज प्रकृति के संग |

 

बैरी फागुन ले उड़ा बड़े बड़ों के होश ,

भांग ठंडई का नहीं इसमें सारा दोष |

 

रंग लगाने के लिए न मुहूर्त न काल ,

खुला निमंत्रण दे रहे साफ़ सुथरे गाल |

 

गलियाँ  मंदिर घाट सब होली में गुलज़ार ,

आज मसाने में सजा बाबा का दरबार |

 

कौन जोगीरा गा रहा सारा रारा राग ,

बाहर बाहर भींगना भीतर भीतर आग | 

 

                 || अभिनव अरुण ||

                      (29022012)

 

Views: 1541

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on March 12, 2012 at 6:29pm

सुन्दर दोहे फागुनी, बहकी-बहकी चाल.

खुला निमंत्रण दे रहे, कोरे-कोरे गाल..

मन में संशय ना रहे, खुले-खुले हों बंध.

मिल जुल रहना प्यार से, आ कर लें अनुबंध..

सादर:

Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 3:09pm
 
आदरणीय श्री वीनस जी इस प्रकरण को और खींचना ठीक नहीं | अतः मैं आप सबको नमन करता हूँ !!  
Comment by वीनस केसरी on March 11, 2012 at 2:51pm

अरुण भाई जी अगर असल बात यही है तो फिर यदि कोंई ऐसा जिसको तख्तीय और दोहे आदि की जानकारी है वो आपको इंगित करते हैं तो आपको वांछित सुधर कर लेना चाहिए या उस शेर /दोहे को हटा देना चाहिए

बाकी जिन बातों का उल्लेख आपने किया है सौरभ जी की उस टिप्पणी से मैं भी भ्रमित हुआ था मगर फोन पर बात करने से स्पष्ट हो गया कि उन्होंने जो बात कही है वो आपके सन्दर्भ में न हो कर एक ऐसे सज्जन के बारे में था जो  ओ.बी.ओ. को टाटा बाय बाय कह चुके है और जाते जाते सौरभ जी को बहुत कुछ कह गये हैं...

मेरे ख्याल से आप उस प्रकरण से अंजान हैं इसलिए आप भी वही सोच रहे हैं जो मैंने सोच लिया था ...

वो प्रकरण और सौरभ जी का कम्नेट को जोड़ कर देखेंगे तो आप पर भी स्थिति स्पष्ट हो जायेगी,
वैसे सौरभ जी को उस प्रकरण के कुछ कटु शब्दों का प्रयोग यहाँ करने से बचना चाहिए था जिससे कोंई भी परिचित नहीं है क्योकि नए सिरे से पढ़ें तो यही भ्रम होता है कि बाते उनके लिए कही गई हैं जो इस चर्चा में शामिल हैं जिसमे मैं ओर आप शामिल हैं  

अंत में यही निवेदन है कि मैं इस चर्चा को मैं ग़ज़ल और दोहा पर हो रही एक सामान्य चर्चा के रूप में ग्रहण कर रहा हूँ आप भी मन में खटास न आने दें
आपका छोटा भाई

 

Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 12:55pm

यदि आप गुणी जन की सोहबत के मैं योग्य नहीं तो फिर जय ओ बी ओ !!

Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 12:52pm

आदरणीय श्री वीनस इस फागुन में कुछ अनुभव वाकई अभिनव हो रहे हैं | मुझे हार्दिक दुःख है | मैं भी सब पढ़ देख रहा हूँ | मेरे एक उदीयमान सदस्य की टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी को एक इशु बनाकार खुद मेरे बारे में जो भाषा प्रयोग की जा रही है मैं उसे भी मजबूती के साथ सहन कर रहा हूँ | साधुवाद साधुवाद आप सबका !!

****

मुझे दुःख है की जब मैं कह रहा हूँ की मुझे तकतई नहीं आती तो यकीं क्यों नहीं किया जा रहा | जहां तक १० में ९ के या ३० में २७ के ठीक होने की बात है यह मेरे लय में लिखने के कारन होगा मात्र वाकई मैं नहीं गिन पाटा | इसका ज़िक्र मैंने सभी से किया है बागी जी से और राणा जी से भी |

Comment by वीनस केसरी on March 10, 2012 at 10:40pm

ग़ज़लों और दोहों में तकतई करना मुझे अब तक नहीं आया | कोई मिला ही नहीं जो मुझे बताता |

आदरणीय बड़े भाई अरुण जी मैं इस बात को आपके द्वारा पिछले सवा साल से सुनता आ रहा हूँ
सीखना चाहें तो किसी का मिलना या न मिलना कोंई औचित्य नहीं रखता, और खोजेंगे तो कोंई न कोंई मिल ही जायेगा
खैर
हैरानी है कि आपके बाकी के दोहे कैसे सही है और तरही ग़ज़ल के १५ में से १३ शेर कैसे सही थे और अगर १५ में से १३ शेर सही थे और १० में से ९ दोहे सही हैं तो बाकी के शेर और दोहे को भी आप बहुत आसानी से सुधार सकते हैं
 
बातों को केवल स्वीकारने से बात कब तक बनेगी ? स्वयं सुधार भी तो आवश्यक है ....

जिस बात पर जानकारों का ध्यान नहीं गया या उन्होंने कहना जरूरी नहीं समझा उस बात को आशीष जी ने कहा और ओ.बी.ओ. के मूल तत्व ( एक दूसरे से सीखने और सिखाने का मंच) को प्रोत्साहित किया इसके लिए आशीष जी बधाई के पात्र हैं
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 10, 2012 at 4:57pm
 

सादर भाईजी, 

सहभागिदाता और परस्पर साहचर्य की मांग यही है.

कल मैं भी कहीं दिखा जो राह भटकता, साथी, हाथ बढ़ा कर थाम लेना. 

सधन्यवाद.

 

Comment by Abhinav Arun on March 10, 2012 at 4:41pm

आदरणीय श्री आपकी हर बात शिरोधार्य है !! प्रयास होगा आपको शिकायत का मौका न मिले !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 10, 2012 at 3:54pm

बातों को अनर्थ न दें, अभिनव जी. यह मात्र आग्रह नहीं, स्पष्टता है. अन्वर्थ को बिना साधे और बिना उचित निराकरण के उपस्थिति को व्यतिक्रम देते हुए ’टा-टा’, बाय-बाय’ करने वाले या तो भगोड़े होते हैं  या फिर अहंकारी. और जहाँ तक मैं जानता हूँ कि आप दोनों में से कोई नहीं हैं.   हाँ, किसी मंच की गरिमा हम आप वरिष्ठों के आचरण पर निर्भर करती है. वरिष्ठ का अर्थ वयसजन्य प्रौढ़ता नहीं बल्कि इस मंच के प्रबन्धन और कार्यकारिणी के सदस्य होने के नाते या रचना कर्म के नाते है.

और ’तल्खी बढ़ी है’  कह कर आप क्या इशारा कर रहे हैं, भाईजी ? क्यों तल्खी बढ़ने लगी भाईजी? किसी अनुज या नवोदित की आवाज़ अन्य अर्थों में ली गई है, क्या यह कम बड़ी बात है ?

आग्रह है, हम समवेत बढ़ें. सस्वर बढ़ें. संतुलित और संयमित बढ़ें. सीखते हुए बढ़ें. सीख कर सिखाने के क्रम में बढ़ें.

सधन्यवाद

Comment by Abhinav Arun on March 10, 2012 at 3:53pm

साथ ही आशीष जी वह शेर दो चार सबक वाला मैंने हैप्पी होली के अंदाज़ में लिखा था आपकी भावना को चोट पहुँचाने के लिए नहीं | मैंने समीक्षा आलोचना को कत्ताअन नाराज़गी की तरह कभी नहीं लिया और न ही मैं अपने को लेखक कवि मानता हूँ | ग़ज़लों और दोहों में तकतई करना मुझे अब तक नहीं आया | कोई मिला ही नहीं जो मुझे बताता | अभी इस मंच पर अग्रजों से निवेदन कर चुका हूँ देखिये सफलता मिलती है की नहीं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service