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हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;


कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;


वो आये तो ख़िज़ां में भी एक ख़ुशगवारी थी,
नहीं हैं वो तो मुझको इन बहारों में भी सेहरा है;


मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


हुई मय से जो तौबा यार वाइज़ बन गया था,
जो देखा जा के तो जाना वो, न सुधरा था न सुधरा है;


कभी ख़्वाबों में धुंधली सी कोई तस्वीर बनती है,
हुए उनसे मुख़ातिब जाना, यही हसीन चेहरा है;


थी जो गफ़लत मुझे के ये हक़ीक़त है हसीं कितनी;
खुली जो आँख पाया कोई, ख़्वाब सुनहरा है;


चले करने बयां अलफ़ाज़ में उन लम्हात को 'वाहिद',
समझ आया उन्हें ये शख़्स, अंधा-गूंगा-बहरा है;

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 12:45pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार वीनस जी! :))

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 12:37pm

मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


गहरी चोट खाई है शायर ने :)))

दर्द की गहराई का कुछ पता नहीं चल रहा है ...
बहुत बढ़िया शेर है

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:51pm

आभार संदीप जी| और इस मंच पर स्वागत भी| :)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:50pm

प्रिय जवाहर भाई,

आप अपने ऊपर क्यूँ ले रहे हैं मैं तो हूँ आपके लिए| :) ये तो अपनेआप को कहा था| आपका शुक्रगुज़ार हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:48pm

आदरणीय राजीव जी,

आपकी दाद सहर्ष क़ुबूल है| हार्दिक आभार,

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 18, 2012 at 5:40am

तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने यह गजल बनाया! प्रिय वाहिद भाई, समझ में आया कि मैं अंधा गूंगा बहरा हूँ!...

बहुत ही मजेदार! होते हैं आपके अल्फाज. उर्दू का मुझे बहुत ही कम ज्ञान है फिर भी लगता जानदार है! 

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 8:52pm

बहुत सुन्दर गजल संदीप जी.बिलकुल तरन्नुम में लिखा है.एक-एक शेर को दाद देने को जी चाहता है.

मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों, कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है

क्या खूब पंक्तियाँ हैं.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 17, 2012 at 6:58pm

आदरणीय अजय जी,

आपने ग़ज़ल के एक शेर को भी सराहा तो लिखना सार्थक हुआ| अभी सीख रहा हूँ धीरे-धीरे सुधार आता जाएगा| हार्दिक आभार,

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 17, 2012 at 4:15pm

सुंदर प्रस्तुति ..वाह कितनी गहराई है प्यार में...८ वी पंक्ति  में..बखूबी बयां किया है ..बधाई संदीप जी

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 16, 2012 at 7:19pm

आभार गुरुवर...यहाँ के ऑपरेशन्स बेहद सरल हैं| बहुत ही जल्दी समझ जाएँगे आप|

कृपया ध्यान दे...

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