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फागुन बुला रहा मन खोले

मितवा आज किसी का होले

बौराई आमों की डालें

कोयल कुहू कुहू स्वर बोले

झूम रही खेतों में सरसों

हवा चल रही हौले हौले

नहर निकम्मी सूखी हरपल

रहट चला कबसे बिन बोले

पानी मांग रहा है गेंहू

बदरा देते आंधी-ओले 

पपुआ अबकी पास हो गया 

अम्मा बैठीं हैं गुड घोले

"खाऊँगा शक्कर के गोले

मीठे-मीठे  पोले-पोले...."

"अबकी पपुआ पी ले शरबत

कल देंगे शक्कर के गोले"

अम्मा की आँखों में आंसू

कथा कह रहे हैं बिन बोले

सब कुछ देख रहें हैं भोले

देंगें सब पर.......हौले हौले

फागुन बुला रहा मन खोले

मितवा आज किसी का होले

 

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 18, 2012 at 12:18am

"अबकी पपुआ पी ले शरबत

कल देंगे शक्कर के गोले"

अम्मा की आँखों में आंसू

कथा कह रहे हैं बिन बोले

प्रिय डॉ ब्रिजेश जी ..प्राकृतिक चित्रण के साथ बड़ी ही सुन्दर ढंग से सारे दर्द को बयाँ कर गयी ये आप की प्यारी रचना -मितवा आज किसी का होले 

भ्रमर ५ 


Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 10, 2012 at 6:32pm

अबकी पपुआ पी ले शर्बत कल देंगे शक्कर के गोले, बहुत ख़ूब कही आपने| साभार,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2012 at 10:02pm

अम्मा की आँखों में आंसू

कथा कह रहे हैं बिन बोले

सब कुछ देख रहें हैं भोले

देंगें सब पर.......हौले हौले

फागुन बुला रहा मन खोले

मितवा आज किसी का होले

आदरणीय ब्रजेश जी, सादर अभिवादन.
भावपूर्ण सुंदर रचना. बधाई. शुभ होली.


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