यह क्या
ऐसा तो न सोचा था
यह तो धोखा हो गया
बच्चा समझ के बहलाया नानी ने
दूर एक ग्रह को बनाया था मामा
रोज रात में बताती थी मुझे
देखो आसमां में जो चमक रहा है
वह हैं सबका प्यारा चंदामामा
धीरे-धीरे अक्ल आने लगी
नानी का झूठ समझ आने लगा
क्यों बोला झूठ उन्होंने
बच्चा जान बहलाया मुझे
लेकिन कहते है
प्यार में होता है सब जायज
यह बात भी समझ आती है
जब बचाना होता है गृह अपना
तब लेता हूं झूठ का सहारा
और कहता हूं अपनी प्रेयसी से
चांद जैसे मुखडे़ पर
बिंदिया है तेरी सितारा
वह भी जानती है और मैं भी
पर क्या जाता है प्यार में
अगर कोई रूठा मान जाए
जैसे नानी कराती थी चुप मुझे
वैसे ही मनाता हूं अपनी प्रेयसी को
लेकर झूठ का सहारा
यह क्या
धोखा खाकर धोखा दे रहा
ऐसा न तो सोचा था मैंने.
Comment
बड़े ही कोमल भावों को पकडा है श्री हरीश जी आपने इस मनभावन रचना के लिए हार्दिक साधुवाद आपको !!
लेकर झूठ का सहारा
यह क्या
धोखा खाकर धोखा दे रहा
ऐसा न तो सोचा था मैंने.
vah harish sir ji, khoob kaha. nani aur preyasi , badhai
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