For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आसमां परिंदो का

मन कहता है
आसमां में चलो
दिमाग कहता है
चले आसमां में
तो गिर जाओगे
दिल और दिमाग ने
किया मिलकर मंथन और
कर दिया फैसला
जिंदगी की मेरी
संभल कर चलो
जमीन पर
पहुंच जाओगे मंजिल पर
न पालों ख्‍वाहिश
आसमां में उडने की
क्‍योंकि
जमीं तुम्‍हारी
आसमां परिंदो का
अपनी हद में रहो
उडने दो उन्‍हें भी
खुले आकाश में
फिर देखा है न
आसमां में उडने वाले को
उन्‍हें भी आना होता है
अपनी जमीं पर
इसलिए
मान लिया मैंने
फैसला दोनों का
आसमां को छोड
जमीन देख रहा हूं
जहां पर बना लूं
अपने ख्‍वावों का आशियां.

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 30, 2012 at 7:18am

हरीश जी, पंख निकल आयें तो चीटियाँ भी आसमान में उड़ने की ख्वाहिशें पाल लेती हैं.मगर हश्र सबने देखा है. सुन्दर रचना बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 29, 2012 at 8:09am
आसमां में उडने वाले को
उन्‍हें भी आना होता है
अपनी जमीं पर
इसलिए
मान लिया मैंने
फैसला दोनों का
आसमां को छोड
जमीन देख रहा हूं
जहां पर बना लूं
अपने ख्‍वावों का आशियां....bahut prabhaavit karti panktiyan apni had me hi khush rahna chahiye.bahut umda bhaav rachna ke.bahut khoob.
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 29, 2012 at 5:21am
 आदरणीय हरीश भट्ट साहब बहुत अच्छा फैसल लिया आपने
अपना आशियाँ जमीं पर बनाया, कुछ ख्वाब हमें भी बताइए!
मुझे भी अपना हम सफ़र बनाइये!
च्छे अबिब्यक्ति लगी आपकी ! बधाई! 
Comment by Harish Bhatt on March 29, 2012 at 1:44am

आदरणीय प्रदीप जी और महिमा जी कविता पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 28, 2012 at 7:58pm

aadrniya harish ji vastav mai sundar kriti, anand aa gaya.badhai.

Comment by MAHIMA SHREE on March 28, 2012 at 4:11pm
आसमां को छोड
जमीन देख रहा हूं
जहां पर बना लूं
अपने ख्‍वावों का आशियां....वाह !! जमीनी सोच को दर्शाती आपकी रचना..हमे अपनी जड़ो की और देख मजबूती से खड़े होने का सन्देश देती है......बहुत-२ बधाई हरीश सर...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service