For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये झुग्गियां ......!

ये झुग्गियां
बांस और फूस से बनी,
चटाई से घिरी
गंदे स्थान पर,
शहर के कोढ़ की तरह
दिखती हैं.
ये झुग्गियां
बड़ी अट्टालिकाओं के
आजू-बाजू,
जैसे ये
उनका मुंह चिढ़ा रही हों!
इन झुग्गियों में रहने वाले
मिहनत-कश इंसान होते हैं
महलों को बनाने वाले
कारीगर होते हैं
सपनो के बाजीगर होते हैं
ये सजाते है
सेहरे, डोलियाँ,सेज
ये सजाते हैं
मंच, आयोजन स्थल, प्रवचनशाला
ये बिखेरते है खुशबू, फूलों की
करते है इत्र से इबादत
करते हैं इन्सान की इबादत
रहते है, बड़े शांत और प्रसन्नचित्त
क्योंकि इनके पास भी है
टी वी और बांस  पे टंगी डिश एंटीना
इनमे होती है जिन्दगी
ज्यादा खुशनुमा.
इन झुग्गियों की महिलाये
शिकायत नहीं करतीं
अपने पतियों से
क्यों नहीं लाये
फूलों के गजरा, मोतियों के हार!
जिनके लिए हमारी पत्नियाँ
रहती हैं बेक़रार!
ये सूंघती हैं पसीने की खुशबू को
देती है प्यार का अहसास
क्योंकि इन्हें तो पता होता है
इनके पति क्या करते हैं
क्योंकि यह भी तो होती है
हर कदम पे साथ साथ!
इन झुग्गियों में कभी चोरी नहीं होती
क्योंकि हर सामान
होता है सार्वजनिक
एक रिक्शावाला
या ठेलेवाला
होता है सबका सहारा
किसी का बच्चा भी
होता है सबका प्यारा
प्राकृतिक आपदाएं
आती है कभी कभी
उड़ा ले जाती हैं इनके
प्लास्टिक और फूस के छत भी
अग्निदेव निगल जाते हैं
इनकी मनोरम कुटिया को
पर ये घबराते नहीं
क्योंकि,
इन्होने हारना सीखा ही नहीं
इनके पास होता है गीता ज्ञान!
क्या लेकर आए थे
और क्या लेकर जाना है
सब कुछ है यहीं का
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है.
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है!
(गीता सार -२
तुम्हारा क्या गया ,जो तुम रोते हो ?तुम  क्या लाये थे ,जो तुम ने खो दिया ?तुमने क्या पैदा किया था ,जो नाश हो गया ?न तुम कुछ लेकर आए ,जो लिया ,यहीं से किया १ जो दिया यहीं पर दिया !जो लिया इसी (भगवान ) से लिया  ! जो दिया इसी को दिया ! खाली हाथ आए ,ओर खाली हाथ चले ! जो आज तुम्हारा है , कल  किसी ओर क़ा था ! परसों किसी ओर क़ा होगा ! तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो ! बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दू:खों क़ा कारण है ! )

 

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 6, 2012 at 9:44pm

आदरणीया महिमा  जी, सादर अभिवादन!

आपने भी इन झुग्गियों में रहने वाले इंसान के दर्द को पहचाना है जानकर सुखद अनुभूति हुई! यह देश  ही ऐसा है. खेती करने वाले मजदूर किसान के पास खाने को पूरा अन्न नहीं है. तन ढकने को पूरा वस्त्र नहीं है! हम केवल संवेदना  ही ब्यक्त कर सकते हैं. 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 6, 2012 at 9:43pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन!

आपने भी इन झुग्गियों में रहने वाले इंसान के दर्द को पहचाना है जानकर सुखद अनुभूति हुई! यह देश  ही ऐसा है. खेती करने वाले मजदूर किसान के पास खाने को पूरा अन्न नहीं है. तन ढकने को पूरा वस्त्र नहीं है! हम केवल संवेदना  ही ब्यक्त कर सकते हैं. 

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 9:29pm

इन झुग्गियों में रहने वाले
मिहनत-कश इंसान होते हैं
महलों को बनाने वाले
कारीगर होते हैं
सपनो के बाजीगर होते हैं . बहुत अच्छी रचना बधाई स्वीकार करें

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 1:10pm

बहुत ख़ूब जवाहर भाई! गीता को आदर्श मान कर क्या सुन्दर रचना की है आपने| बधाईयां!!

Comment by MAHIMA SHREE on April 6, 2012 at 12:56pm
आदरणीय जवाहर सर ,
मर्म स्पर्शी रचना ..बहुत सटीक चित्रण किया है....बिलकुल हम सबके मन की बात आपने कर दी....
बधाई स्वीकार करे..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2012 at 10:58am

वाह जवाहर जी क्या कहूँ आपकी इस रचना के विषय में दिल को छू गई झुग्गी झोपडी का सटीक चित्रण किया है आपने मैंने भी इनको बहुत करीब से देखा है मुंबई में हमारे नेवी की इमारतों से सब दिखाई देता था यही भावनाएं मेरे हर्दय में भी जन्म लेती थी इतनी बड़ी बड़ी इमारतें बनाते हैं ये लोग और खुद एक छोटी सी  झोंपड़ी में रहते हैं किस्मत के खेल निराले !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service