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मनीषी जी ,सादर नमस्ते
बहुत ही अच्छी रचना ,..बहुत बधाई
बहुत अच्छी कविता,मानिषी जी.
सम्मान मिला था उसको तो, अस्मत जिसने है लुटवाया
वीर बाँकुरे रहे उपेक्षित, मान लुटेरों को दिलवाया
बाबर-अकबर कितने महान, सच है उनकी लूट-कहानी
“पुरु” ‘वीर’ ‘शिवा’ ‘मंगल’ ‘सुभाष’, ‘आजाद’ ‘भगत’ थे बलिदानी ...Manishi ji aapke bhao ko aadarniy Ambarish ji ne sunder set-up diya hai....nishchit tour pe ek achchha prayas....
Ambarish ji Yograj ji,Vinas Kesari ji,Ganesh ji Bagi Dharmendr Sharma ya Saurabh Pande ji ka marg-darshan aapke lekhan ko nai unchaiya de sakta hai....
सुन्दर भावों से सजी समसामयिक रचना !
MANISHI SINGH जी अति सुंदर भावभिव्यक्ति ,,बाकी सुधी जनों के निर्देशन मे शिल्प भी निखर उठेगा अच्छी कृति के लिए हार्दिक बधाई ...
सुन्दर प्रयास , बधाई मनीषी जी
मनीषी जी, आपकी रचना के भाव अति उत्तम हैं ! हार्दिक बधाई!
ओबीओ पर आकर बस इसी तरह से अभ्यास करती रहें ....जिससे लय, तुक, मात्रा, गेयता, यति, व प्रवाह इत्यादि स्वयं ही सधते जायेंगें | परिणामस्वरूप रचनाएँ दिन-प्रतिदिन निखरती ही जायेंगी|
उदाहरण के लिए आपकी उपरोक्त रचना को ही वांछित शिल्प में ढालने का प्रयास किया गया है !
आजाद था भारत पहले से, कब इस बेड़ी में जकड़ा था
गलत सोच बदली ना हमने, सो इसी बात का रगड़ा था
था सोने की चिड़िया भारत, कहते अब भी इनकार नहीं
पहले था लुटा विदेशी से, अब लूटें अपने लोग यहीं
पूजा नित नए लुटेरों को, निज स्वार्थ जगे सत्कार किया
जो बढ़े रोकने उन सबको, पग-पग उनका अपमान किया
सम्मान मिला था उसको तो, अस्मत जिसने है लुटवाया
वीर बाँकुरे रहे उपेक्षित, मान लुटेरों को दिलवाया
बाबर-अकबर कितने महान, सच है उनकी लूट-कहानी
“पुरु” ‘वीर’ ‘शिवा’ ‘मंगल’ ‘सुभाष’, ‘आजाद’ ‘भगत’ थे बलिदानी
कैसे कह दें आजाद कहाँ, जो बलिदानी तक याद नहीं
लायेगा कौन सुराज यहाँ, इनसे कोई फरियाद नहीं
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
priy manishi ji sundar bhav liye rachna ke liye badhai.
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