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मन में मंदिर होता है

तब मन भी सुंदर होता है

दुःख तो आना जाना है

क्यूँ चिंता करता रोता है

दूजे पर क्यूं हँसता है

वही काटेगा जो बोता है

पाप करेगा भोझ भी उसका

जीवन भर दिल ढोता है

पहले सोचा होता तुने

दाग लगा तब धोता है

रातों को वो जागे है

दिन भर देखो सोता है

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Comment

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Comment by Admin on September 28, 2010 at 9:03am
श्रीमान अभिनव जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन के अधिकतर सदस्य "भाई" शब्द का प्रयोग सम्मान सूचक संबोधन मे करते हैं, आप ने "भाई" शब्द पर आपत्ति और विवाद खड़ा कर रखा है, OBO प्रबंधन इस मुद्दे पर व्यापक विचार विमर्श के बाद निर्णय लिया है कि "भाई" शब्द भारतीय संस्कृति और साहित्यिक दृष्टिकोण से कही भी गलत नहीं है और किसी के कह देने मात्र से भाई का अर्थ गुंडा और हफ्ता वसूल करने वाला नहीं हो सकता, यदि कोई ऐसी सोच रखता है तो यह उसके विकृत सोच का दोष है "भाई" शब्द का नहीं |
आप से उम्मीद कि जाती है कि आप पुनः "भाई" शब्द को लेकर कोई विवाद नहीं करेंगे और यदि आपको अभी भी "भाई" शब्द पर आपत्ति है तो आप OBO को छोड़ जाने के लिये स्वतंत्र है |
आपका
एडमिन
OBO
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 8:46pm
आदरणीय एडमिन जी
सादर नमस्कार
निवेदन ,
मुझे यह जानकरी नहीं थी इस लिए कवीता सीधी पोस्ट कर दी थी अब मैने आपकी
आज्ञा अनुसार कवीता बलोग में पोस्ट कर दी है !
आपका अनुज
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 8:29pm
आदरणीय सौरभ पांडे जी
नमस्कार
निवेदन ,
आप मेरे बडे हैं यदि (भाई) शब्द उपयुक्त है तो महिलाओं के नाम के आगे बहन क्यूं नहीं लिखा जाता
उनको नाम के बाद (जी)लिखा जाता है !
आपका अनुज
Comment by Admin on September 27, 2010 at 8:20pm
अभिनव जी की एक कविता जो बिना अनुमोदन के यहाँ पोस्ट कर दिये थे उसे प्रवंधन स्तर पर हटा दिया गया है |
Comment by Admin on September 27, 2010 at 7:43pm
अभिनव जी, आप यह कविता "मेरा इक छोटा सा सपना" अलग ब्लॉग बना कर पोस्ट करे जो प्रधान संपादक के अनुमोदन पश्चात् प्रकाशित होगा, आप यह जानते ही होंगे कि OBO पर कोई भी रचना अनुमोदन के पश्चात् ही प्रकाशित हो पाती है |
अगले आधा घंटे के अन्दर यह कविता प्रबंधन स्तर से हटा दिया जायेगा |
धन्यवाद |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 27, 2010 at 2:34pm
प्रिय अभिनव जी
बहुत दुःख होता है जब आप जैसे उर्जावान व्यक्ति को ऐसे विवादों में पड़ते देखता हूँ| आप यकीन मानिये मै आपसे कुछ कहता भी नही और न ही मैंने आपको ऐसा कुछ कहा जिससे आपको तमाचे का भान हुआ| शायद आपको यह इसलिए लग रहा होगा कि आपके द्वारा ही दूसरे की भाषा को इंगित करने पर मैंने आपकी भाषाई त्रुटियों कि ओर इशारा मात्र किया था| यदि यह भी आपको नागवार गुजरा हो तो शायद मै ही गलत था कि मै आपको कुछ सही बता रहा था| दूसरी बात मैंने यह भी कभी नहीं कहा कि मै उस्ताद हूँ| हां प्रसंगवश आपसे यह ज़रूर कहा था कि यदि आपकी आदरणीय आज़र साहब से बात हो तो उनसे कह दीजियेगा कि वह अपनी ग़ज़ल स्वतः ही पोस्ट कर दे तो बेहतर होगा| वो भी तब कहा जब आपने कहा कि मेरी उनसे बात होती रहती है और संभवतः आप कल उनसे मिलने वाले है|
यदि यह सारी बात आप स्वतः कहते तो मुझे ख़ुशी होती|
धन्यवाद|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 27, 2010 at 2:17pm
भाई योगराजजी,
छोटी बहर में लिखी प्रस्तुत रचना को देख कर पढ़ने को मैं उद्यत हो गया. कुछ बंदों को पढ़ने के बाद लगा कि उन पर कुछ और मशक्कत की ज़रुरत है. परन्तु, प्रतिक्रियाओं को देख कर मन अत्यंत दुखी हुआ है. आपसे अनुरोध है कि,
१. प्रतिक्रियाओं को भी अब से संपादन पश्चात ही पब्लिश होने का अनुमोदन मिले.
२. नव-हस्ताक्षरों पर विशेष नज़र रखी जाय.
३. जिन महाशयों की भाषा शिष्टाचार के दायरे में न आती दिखे उनसे कड़ाई से पेश आयँ.
४. आत्म-मुग्धता बहुत बड़ा अभिशाप है.
५. यदि यह प्रतीत हो कि अमुक सदस्य संकुचित मानसिकता से ग्रसित है या उसके अनुभव में व्यापकता की कमी दीख रही है तो उसे यह स्पष्ट रूप से जानकारी दे दी जाय कि पहले वह अपनी समझ, ज्ञान और व्यवहार के दायरे को संपुष्ट करे और तबही निर्णयात्मक पंक्तियाँ लिखे या पोस्ट करे.
६. ’भाई’ सम्बोधन किसी लिहाज से अतुकान्त या अशिष्ट नहीं है.
७. सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है, यह व्यापक होने का द्योतक है. इसके साथ ही आपस में सम्मान व्यवहार और संवैधानिक भाषा का प्रयोग हो इसकी जानकारी अवश्य दी जानी चाहिए और इसका ध्यान रहे.

विश्वास है, मेरे निवेदन पर ध्यान दे कर अनुगृहित करेंगे.

धन्यवाद.
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 1:28pm
आदरणीय राणा जी मैं सैदव आपको आदरणीय ही कहूगां! आप चाहे जो मर्जी लिखो
मेरा तो कहने का मकसद यह था यदि आप भी इस प्रकार लिख देते तो मेरा मन भी गद्द-गद्द हो जाता !
प्रिय अभिनव सदा सुखी रहो मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है पहली रचना अति सुंदर है थोडा ओर प्रयास करो !
आपका अनुज
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 1:15pm
आदरणीय योगी राज जी
चरण वंदना !

आप की कही हुई बातें मेरे लिए प्रसाद रूपी हैं आप ने ही मुझको फोन द्वारा ओ .इ .पी. आई .सी की जानकारी दी थी
जिसका मै आपका दिल से आभारी हूँ मेरा कसूर इतना है आज
चैटिगं के दौरान आदरणीय गणेश जी से विनम्र निवेदन किया था की मै लखनऊ का रहने वाला हूँ
तथा भाई का शब्द हमारे तहजीब में नहीं आता है या तो भाई साहिब कहो या नाम के आगे प्रिय या अनुज
व् बड़ो को आदरणीय.जानाब. महोतरम .माननीय जैसे शब्दों से नवाजा जाता है इसी दौरान आदरणीय राणा जी आ गए
वो आदरणीय "आज़र" साहिब की बाते करने लगे की उनको कहो की आज जो उन्होंने ग़ज़ल मुझको भेजी है सीधी पोस्ट करें
और उनका मुकाम तो बहुत ऊंचा है वैगरा-वैगरा आप ही बताएं मै ये बात कैसे कह दूंगा !मेरे ऊपर माता-पिता का सया नही है ! आप सब का आशीर्वाद बना रहे !
आपका अनुज
अभिनव खत्री
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 11:12am
आदरणीय गणेश जी !
(१)आपके फ़िर से नाम के बाद भाई लिखने पर पुर जोर इतराज है
यह हफ़्ता ,महीना या जो लोग ब्लैक मेलिंग करते हैं उनकी भाषा है!
हमारे लखनऊ की तहजीब में इसको नामकूलों की भाषा माना जाता है
(२) यदि आप को बडा नही मानता तो आपको आदरणीय गणेश जी
न लिखता ! यह मेरी गल्ति है मुझे (पढते हैं) लिखना चाहिये था मुझे क्षमा करेगें !
(३)मैंने अपनी रचना को ग़ज़ल का नाम कब दिया है ?(मन में) नाम देने से ग़ज़ल कैसे हो गई!
(४) ग़ज़ल व कवीता पहले लिखी जाती है फ़िर पढी व कही जाती है! बनाई नही जाती
जब तक आप लिखोगे नहीं तो पढोगे और कहोगे कैसे?
(५ आदरणीय आज़र साहिब द्वारा लिखी ग़ज़लशाला में भी (भाई) शब्द पर इतराज जताया गया है !
इस बात का जवाब उनसे मागों तो बेहतर रहेगा !
(६) मै ओ .बी. सी गुरुप में सभी को ध्यान से पढता हूं और सीखने आया हूं न कि किसी की वकालत करने !
आज भलाई का जमाना रह कहां गया है लोग तो सीखने के बाद भी कह देते हैं जैसा की आदरणीय राणा जी
द्वारा पाहले के लाइव तरही मुशायरे पर शेर को कोड करते हुए आदरणीय आज़र साहिब द्वारा (४) शेर पढ कर
मैं गद्द-गद्द हो गया! जो मैं बिना उनकी इजाजत के पोस्ट कर रहा हूं!

(१)भूल बैठा हूं मैं खुद को जो मिला हूं तुझसे
इक मुहब्बत में तेरी दीपक जला रक्खा है

(२)भूल बैठा हूं मैं खुद को जो मिला हूं तुझसे
याद ने तेरी यूं दीवाना बना रक्खा है

(३) भूल बैठा हूं मैं खुद को जो मिला हूं तुझसे
दिल कि धडकनों ने तन-मन से हिला रखा है

(४)भूल बैठा हूं मैं खुद को जो मिला हूं तुझसे
बस निगाहों ने तेरी पागल बना रखा है
धन्यवाद

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