अभिव्यक्ति - खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !
अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,
दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता |
उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,
रिश्वत न दें तो काम हमारा नहीं होता |
है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,
बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता |
चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,
शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |
हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,
खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |
बचना ज़रा की मिलते हैं पैकिट में बंद लोग ,
भीतर के आदमी का नज़ारा नहीं होता |
हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,
सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता |
उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,
पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता |
तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,
झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |
हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,
गर सोच में ये मेरा - तुम्हारा नहीं होता |
[ आत्मकथ्य :- साथियो ! लिखा ग़ज़ल सोच कर ही है ; पर जानता हूँ यह उस्तादों की कसौटी पर शायद ही खरी उतरे | सो पहले खेद व्यक्त करता हूँ | इसे एक कविता की तरह ही परखें - पढ़े - साहित्यिक आनंद लें यही चाह है , बस | ]
Comment
आदरणीय अभिनव जी नमस्कार ,
लाजवाब प्रस्तुति ....एक से बढकर एक......के क्या कहने है..
मुझे खेद है इतनी खुबसूरत कविता देर से पढ़ रही हूँ ....
bahut-2 badhai aapko
चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,
शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |
aadarniya mahodaya , saadar abhivadan. sari ki sari badhiya. badhai.
आदरणीय श्री आशीष जी हार्दिक आभार आपका !! मेरे लेखन को सार्थकता मिली !!
आदरणीय श्री संदीप जी !! इतने सारे शेर आपको पसंद आये !! हार्दिक आभार आपका !! मेरा लेखन सार्थक हुआ !!!
भईया,
कुछ कहने लायक सूझ ही नहीं रहा| एक से बढ़ कर एक अशआर हैं आपके| उनके भाव और कहने का अंदाज़ तो बिलकुल लाजवाब है| किसी एक शे'र का उल्लेख करना बाक़ी के साथ ज़्यादती होगी फिर ऐसी जुर्रत या हिमाकत जो भी कह लें कर रहा हूँ|
हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,
सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता |
उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,
पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता |
तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,
झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |
सबने पढ़ी, मैने भी।
जबरदस्त रचना।
हर एक शे'र बाकमाल है।
बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय श्री अरुण जी apko रचना पसंद आई !!
बचना ज़रा की मिलते हैं पैकिट में बंद लोग ,
भीतर के आदमी का नज़ारा नहीं होता |
आपने दुष्यंत की याद दिला दी .. बहुत बहुत बधाई .
adarniy श्री Ganesh Jee "Bagi" जी ख़याल आपको पसंद आये मेरा लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभारी हूँ आपका !! अच्छा बुरा जो भी कह पा रहा हूँ उसमे ओ बी ओ और इसके शुभचिंतकों का बड़ा योगदान hai सबका आभार !!
respected Dr. Prachi Singh many many thanks . its my pleasure to read your comment .
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