Comment
yahi to saaritabahiyon ki jad hai, kanya apni bat kode me kahti hai aur ham hain ki us kode sa mahir nahi ho pate.....
हाथों में आई वो किताब ! थरथरा गया अस्तित्व ! जैसे कोई रेल गुज़री हो किसी पुराने पुल से !
क्या कहने bahut खूब " वो किसी रेल सी गुज़रती है , और मैं पुल सा थरथराता हूँ "" badhai इस रचना पर !!
सुन्दर भाव प्रस्तुत किये अरुण जी! बधाईयां आपके लिए... :))
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