For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - जिन्हें डर है खुदा का

उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं

मगर  पहले  मुझे अपना बनाएं

 

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा

जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं

 

जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर

चलो   बैठे   कहीं  आँसू   बहाएं

 

तुम्हारे  आफताबों  की वज़ह से

अभी  कुछ  सर्द  है  बाहर हवाएं

 

तिरा  दरबार  है मुंसिफ भी  तेरे

कहूँ  किससे  यहाँ  तेरी  खताएं

 

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ

कहो  अय्याम  से  पत्थर उठाएं

 

अंधेरे   सूर्य  से  डरते   नही   है

चलो हम दीप बनके  जगमगाएं

 

............................... अरुन श्री !

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on April 19, 2012 at 10:49pm

अंधेरे   सूर्य  से  डरते   नही   है

चलो हम दीप बनके  जगमगाएं...

kya baat hai...bahut khub

Comment by Arun Sri on April 17, 2012 at 12:05pm

सरिता सिंह मैम , बहुत बहुत धन्यवाद ! आपने गज़ल कि सराहना की
आपका सुझाव निश्चित ही स्वागत योग्य है ! अय्याम का प्रयोग समय के बहुवचन जमाना ( काल  खंड ) के लिए भी किया जाता है ! जैसे गर्दिशे -अय्याम , रहबरे अय्याम आदि ! फिर भी आपके निर्देशनुसार शब्द आवाम ज्यादा प्रासंगिक रहेगा ! इस अनमोल सुझाव के लिए पुनः धन्यवाद ! दृष्टि बनाए रखिए ! सादर !

Comment by Sarita Sinha on April 15, 2012 at 9:59pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल अरुण जी,

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा

जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं....
क्या बात कही है....
एक छोटा सा सुधार कर लीजिये......

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ

कहो  अय्याम  से  पत्थर उठाएं.....
यहाँ अय्याम की जगह अवाम(जनता ) होना चाहिए..."अय्याम" तो दिन का बहुवचन होता है..( यौम(=दिन )एकवचन है और अय्याम उस का बहुवचन )
उदा.----शब-ओ-अय्याम ( रात  और दिन )
Comment by Arun Sri on April 7, 2012 at 10:44am

वीनस सर , पहले शे'र में टंकण की त्रुटि हो गई थी  ! बाकी पर आपके निर्देशानुसार फिर से नज़र डालता हूँ ! धीरे धीरे आपके मार्गदर्शन से अपेक्षित सुधार आ जाएगा ! धन्यवाद !

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2012 at 1:08am

अरुण जी, ग़ज़ल को पकाने का काम बहुत सब्र मांगता है, पकी हुई ग़ज़ल के कहन से अलग ही नूर बरसाता है
फिलवक्त आपकी ग़ज़ल के दो शे'र पर बात करूँगा

अंधेरे   सूर्य  से  डरते   नही   है    (यदि यह मिसरा ही रखना है तो है को हैं करना चाहिए )
चलो हम दीप बनके  जगमगाएं

अंधेरा   सूर्य  से  डरता   नही   है
चलो हम दीप बन कर  जगमगाएं


जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो   बैठे   कहीं  आँसू   बहाएं...

इस शे'र के उला में और मेहनत करने की जरूरत है, बात को और अच्छे ढंग से और सादगी से कहिये तो मजा आ जाए 

अन्य शे'र पर आप खुद गौर करें ...

Comment by Arun Sri on April 6, 2012 at 9:59am

वीनस सर , आपने देखा इसके लिए धन्यवाद !

कृपया सुधार करने में सहायता करें !

आभारी रहूँगा !

Comment by वीनस केसरी on April 6, 2012 at 1:03am

उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं

मगर  पहले  मुझे अपना बनाएं

 
वाह अरुण जी क्या शेर कहे हैं दिल खुश हो गया,
कुछ शेर और काम मांग रहे हैं, कोताही न कीजियेगा, बेहतरीन ग़ज़ल होने ही वाली है

Comment by Arun Sri on April 4, 2012 at 12:42pm

राकेश भाई जी ! आपको शे'र पसंद आए तो मेरा लिखना सफल रहा !
दृष्टि बनाए रखिए ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on April 4, 2012 at 12:40pm

मनोज मयंक सर ! मैं अभी नया नया लिखने की प्रयास कर रहा हूँ ! मुझे बारीकियों की जानकारी नही है ! मैं तो जो किताबों में पढता हूँ सोचता हूँ कि सच ही होगा ! इसी सन्दर्भ में मैंने अपनी बात  रखी ! प्रार्थना है कि आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ! आभारी हूँ !

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 4, 2012 at 11:01am

वाह वाह! बहुत खूब श्री अरुण जी,
विशेष:

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा

जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं.............वाह! सखा भाव की अद्भुत अभिव्यक्ति,

जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर

चलो   बैठे   कहीं  आँसू   बहाएं.............वाह! वाह!! ye to vahi baat hai ki "mujh se bichad ke khush rahate ho, mere jaise jhuthe ho"

Saadar badhaai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service