उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर पहले मुझे अपना बनाएं
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं
तुम्हारे आफताबों की वज़ह से
अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं
तिरा दरबार है मुंसिफ भी तेरे
कहूँ किससे यहाँ तेरी खताएं
खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
कहो अय्याम से पत्थर उठाएं
अंधेरे सूर्य से डरते नही है
चलो हम दीप बनके जगमगाएं
............................... अरुन श्री !
Comment
अंधेरे सूर्य से डरते नही है
चलो हम दीप बनके जगमगाएं...
kya baat hai...bahut khub
सरिता सिंह मैम , बहुत बहुत धन्यवाद ! आपने गज़ल कि सराहना की
आपका सुझाव निश्चित ही स्वागत योग्य है ! अय्याम का प्रयोग समय के बहुवचन जमाना ( काल खंड ) के लिए भी किया जाता है ! जैसे गर्दिशे -अय्याम , रहबरे अय्याम आदि ! फिर भी आपके निर्देशनुसार शब्द आवाम ज्यादा प्रासंगिक रहेगा ! इस अनमोल सुझाव के लिए पुनः धन्यवाद ! दृष्टि बनाए रखिए ! सादर !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल अरुण जी,
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
वीनस सर , पहले शे'र में टंकण की त्रुटि हो गई थी ! बाकी पर आपके निर्देशानुसार फिर से नज़र डालता हूँ ! धीरे धीरे आपके मार्गदर्शन से अपेक्षित सुधार आ जाएगा ! धन्यवाद !
अरुण जी, ग़ज़ल को पकाने का काम बहुत सब्र मांगता है, पकी हुई ग़ज़ल के कहन से अलग ही नूर बरसाता है
फिलवक्त आपकी ग़ज़ल के दो शे'र पर बात करूँगा
अंधेरे सूर्य से डरते नही है (यदि यह मिसरा ही रखना है तो है को हैं करना चाहिए )
चलो हम दीप बनके जगमगाएं
अंधेरा सूर्य से डरता नही है
चलो हम दीप बन कर जगमगाएं
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं...
इस शे'र के उला में और मेहनत करने की जरूरत है, बात को और अच्छे ढंग से और सादगी से कहिये तो मजा आ जाए
अन्य शे'र पर आप खुद गौर करें ...
वीनस सर , आपने देखा इसके लिए धन्यवाद !
कृपया सुधार करने में सहायता करें !
आभारी रहूँगा !
उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर पहले मुझे अपना बनाएं
वाह अरुण जी क्या शेर कहे हैं दिल खुश हो गया,
कुछ शेर और काम मांग रहे हैं, कोताही न कीजियेगा, बेहतरीन ग़ज़ल होने ही वाली है
राकेश भाई जी ! आपको शे'र पसंद आए तो मेरा लिखना सफल रहा !
दृष्टि बनाए रखिए ! धन्यवाद !
मनोज मयंक सर ! मैं अभी नया नया लिखने की प्रयास कर रहा हूँ ! मुझे बारीकियों की जानकारी नही है ! मैं तो जो किताबों में पढता हूँ सोचता हूँ कि सच ही होगा ! इसी सन्दर्भ में मैंने अपनी बात रखी ! प्रार्थना है कि आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ! आभारी हूँ !
वाह वाह! बहुत खूब श्री अरुण जी,
विशेष:
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं.............वाह! सखा भाव की अद्भुत अभिव्यक्ति,
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं.............वाह! वाह!! ye to vahi baat hai ki "mujh se bichad ke khush rahate ho, mere jaise jhuthe ho"
Saadar badhaai.
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