मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !
टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !
जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए फिरते है
फटी पुरानी साँसों की गठरी !
घायल जिस्म पर
जिंदगी के चीथड़े लपेटे हुए ,
बेजुबां आंसुओं से भरी सपनीली आखें ,
बाट जोहती है
एक नए सूरज की !
अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !
छिल चुके जिस्म को जला देगा !
उनके हर चमकीले सपनों को ,
एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !
..................................... अरुन श्री !
Comment
सौरभ सर , मैंने प्रयत्न किया कि दुर्बल और अशक्त समुदाय के विषाद के क्षणों का चित्रण कर सकूँ ! ये रचना किसी के जीवन का निराशा से भरा क्षण मात्र है ! आपको पसंद आया तो मेरा सौभाग्य है !
बाकी इस रचना से परे यदि कहूँ तो बस इतना ही कहना चाहूँगा -
//आशा ही जीवन है//
सादर !
राजेश कुमारी मैम , आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! आभार !
भाई अरुण जी, प्रस्तुत रचना की पंक्तियों से निस्सृत होती सचाई इन्द्रियों को सन्न कर देती है.
वास्तव में, हरेक के जीवन में एक समय आता है जब किया गया प्रयास मुँह चिढ़ाता हुआ प्रतीत होता है. उन क्षणों के कारण किसी दुविधाग्रस्त के जीवन में व्याप्त असमंजस व अन्यमनस्कता नकारात्मकता का पर्याय भले दीखे किन्तु कोई बलात् नकारा शक्तियों से पछाड़ नहीं खाना चाहता. मैं अपनी कही एक रचना का बानगी देना चाहूँगा.
ऐसा नहीं अंधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी हो
चकचकाती इस उजली धूप से बच पाने की इच्छा भी हो सकती है,
छाँव पा जाने की अधीर उम्मीद !
उम्मीद है, भाई अरुणजी, आप मेरे कहे का आशय समझ रहे हैं.
अरुण जी गरीबी का बड़ा अच्छा चित्रण किया है आपने बहुत प्रभाव शाली रचना.
सीमा मैम ! मेरे प्रयास को आपने ह्रदय में स्थान दिया ! ये मेरे लिए सम्मान की बात है ! सादर !
क्क्य कहने सुन्दर भाव सशक्त अंदाज़ -
अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !
छिल चुके जिस्म को जला देगा !
उनके हर चमकीले सपनों को ,
एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !
इस रचना हेतु हार्दिक बधाई अरुण श्री !!
महिमा मैम ! काश कि तथाकथित "सूरज" भी इस दर्द को समझ पाते ! आपने समझा ! आभारी हूँ !
प्रदीप सर ! सराहना हेतु धन्यवाद !
अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !
छिल चुके जिस्म को जला देगा !
उनके हर चमकीले सपनों को ,
एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !
snehi arun ji, sadar, bahut sundar bhav ke sath prastuti. prasannta hui. badhai.
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